जिस प्रकार देश को मुफ्त की सौगातों और लोकलुभावन वादों की भट्टी में झोंका जा रहा है, वह देश की अर्थव्यवस्था के लिए नासूर साबित हो सकता है। हिंदुस्तान के करदाताओं का पैसा केवल वोट खरीदने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसका मूल्यांकन करने के लिए एक समिति बनाई थी, जिसकी रिपोर्ट अभी आनी है।

आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है, जबकि कर्नाटक पर 4.70 लाख करोड़ रुपए। हाल की पांच गारंटी से पचास हजार करोड़ रुपए का और खर्चा बढ़ेगा। मध्यप्रदेश पर 3.37 लाख करोड़, गुजरात पर 3.8 लाख करोड़, हरियाणा पर 2.29 लाख करोड़, पंजाब 3.75 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। सभी राज्यों का कुल कर्ज वर्ष 2021 के पंद्रह फीसद से बढ़कर 2022 में 31.3 फीसद तक पहुंच गया है। सभी राज्यों का सर्वाधिक कर्ज अनुपात कुछ इस तरह है- पंजाब 53.3 फीसद, राजस्थान 39.8 फीसद, प. बंगाल 38.8 फीसद, केरल 38.3 फीसद, आंध्र प्रदेश 37.6 फीसद।

सभी राज्यों का कर्ज प्रतिशत 2022 में 31.2 फीसद हो गया है, जो निहायत चिंता का विषय है। पुरानी पेंशन योजना लागू करने से राज्यों की आर्थिक हालात और खराब हो सकते हैं। चुनाव आयोग को अपनी आंखें खोलनी होंगी और सभी प्रकार के मुफ्त की रेवड़ी देने वाले दलों पर सख्त नियम ओर प्रतिबंध लगाने ही होंगे, अन्यथा राज्य बर्बाद हों जाएंगे। एक अंधी दौड़ चुनाव जीतने की शुरू हो गई है।

क्या राज्यों के पास इतने संसाधन हैं कि वे इसे लागू कर पाएंगे। वह दिन दूर नहीं, जब राज्य चंगुल में बुरी तरह फंस जाएंगे और विकास और विकासोन्मुख योजनाएं औंधे मुंह धाराशयी होंगी। केंद्र और चुनाव आयोग को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा, वरना वह दिन दूर नहीं, जब हमें भी अपने पड़ोसी मुल्कों की तरह बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं।
आरके शर्मा, दिल्ली।

जाति की जकड़

आज हम अपनी तथाकथित जातियों से चिपक से गए हैं और ऊपर से हिंदू एकता का ढकोसला भी बघार रहे हैं। हम अपनी जाति और बिरादरी के अपराधियों का महिमामंडन करने से भी नहीं चूक रहे तथा तर्कों के सहारे उन्हें महापुरुष घोषित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल अभ्यर्थियों की जाति का पता लगाकर उन्हें बधाई संदेश प्रेषित करके अप्रत्यक्ष रूप से अपनी जाति को अव्वल दिखाने का प्रयास भी कर रहे हैं।

भले ही उस व्यक्ति के साथ हमारी मुलाकात कभी न हुई हो और न ही भविष्य में ऐसी कोई संभावना है। चुनाव में भी हम अपनी जाति के उम्मीदवारों को प्रथम प्राथमिकता देते हैं। इतना ही नहीं, हम विभिन्न खेलों के खिलाड़ियों पर भी अपनी जाति की मुहर लगाने से नहीं चूकते हैं। हद तो तब हो जाती है जब हम देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले जवानों में भी अपनी जाति को तलाशते हैं। यह कैसी रूग्ण और संकीर्ण मानसिकता है। विचारों की इस संकीर्ण नली में अगर ज्ञानरूपी रक्त बहना भी चाहे तो हृदयाघात ही होगा।
पीके बोस, पटना।

आस्ट्रेलिया को ताज

विश्व टैस्ट चैंपियनशिप के फाइनल मैच में भारतीय बल्लेबाजों और गेंदबाजों के निराशाजनक प्रदर्शन से देश के करोड़ों खेल प्रेमियों का दिल टूट गया और आस्ट्रेलिया टैस्ट चैंपियनशिप का बादशाह बन गया। टास जीत कर भारतीय कप्तान का गेंदबाजी करने का फैसला हैरानी भरा रहा, क्योंकि भारत अपनी मजबूत बल्लेबाजी के लिए जाना जाता है।

आस्ट्रेलियाई टीम ने पहले दिन ही मैच में अपनी स्थिति मजबूत कर ली और भारतीय गेंदबाज असहाय नजर आ रहे थे। रविंद्र अश्विन को टैस्ट मैच से बाहर रखने का निर्णय गलत सिद्ध हुआ। भारत को इस हार से सबक लेते हुए अपनी गेंदबाजी को और मजबूत करना चाहिए, बल्लेबाजों को भी अधिक जिम्मेदारी पूर्वक मैदान में खेलना चाहिए।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया।

पढ़ाई पर लड़ाई

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चूंकि आइआइटी से पढ़े, लोक सेवा आयोग उत्तीर्ण हैं और उच्च पदों पर आसीन रहे हैं। वे गांधीवादी अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उभर कर प्रखर राजनेता बन गए हैं। सब कुछ ठीक है, पर उन्हें किसी भी राजनेता की शिक्षा से संबंधित डिग्रियों पर बेवजह प्रश्न नहीं उठाने चाहिए।

भारतीय लोकतंत्र में हर व्यक्ति, चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित उसे राजनीति के जरिए संवैधानिक पदों पर जाने का अधिकार है। इसीलिए राजनीति के मार्फत अनेक कम शिक्षित व्यक्ति भी उच्च पदों पर आसीन हैं और ऐसे भी करोड़ों लोग हैं, जो उच्च शिक्षित होते हुए भी छोटी-मोटी नौकरी, व्यवसाय या व्यापार-धंधे में लीन हैं।

केजरीवालजी को समझना चाहिए कि राजनीति में आने और सफलता पाने के लिए पढ़ाई से अधिक दिमागी लड़ाई की जरूरत होती है। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ‘राजनीति वह टेढ़ी-मेढ़ी टोपी है, जिसे हर कोई पहन सकता है।’ इसलिए वे भी ‘आम आदमी पार्टी’ की टोपी पहन कर जितना आम आदमी का भला कर सकते हैं करें और औरों की टोपियां अपने स्वार्थ के लिए उछालने से परहेज करें।
शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर।

सपना टूटा

एक बार फिर भारतीय क्रिकेट टीम की नाव किनारे पर आकर डूब गई। विश्व टैस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में आस्ट्रेलिया ने भारत को करारी शिकस्त देकर उसके सपनों को चूर-चूर कर दिया। एक दिवसीय, टी-ट्वेंटी और टैस्ट क्रिकेट, तीनों स्वरूपों में विश्व कप जीत कर आस्ट्रेलिया ने इतिहास रच दिया। 2021 में भी भारतीय टीम फाइनल में पहुंची थी, लेकिन न्यूजीलैंड के हाथों पराजित होकर भारत का सपना बिखर गया था।

इस बार पैंट कमिंस की आस्ट्रेलियाई टीम बल्लेबाजी, गेंदबाजी और फील्डिंग, सभी क्षेत्रों में भारतीय टीम को मात देकर पहली बार विश्व टैस्ट चैंपियनशिप का खिताब जीता। रोहित शर्मा की भारतीय टीम पर आइपीएल क्रिकेट का प्रभाव देखा गया और कोई भी बल्लेबाज विकेट पर टिक कर लंबी पारी नहीं खेल पाया। रविचंद्रन अश्विन को नहीं रखना और टास जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला भी भारतीय टीम की हार की प्रमुख वजह साबित हुई। इसी वर्ष भारत में एक दिवसीय क्रिकेट का विश्व कप होने वाला है। क्या हमारी टीम वनडे विश्व कप में चैंपियन हो पाएगी?
अनित कुमार राय टिंकू, धनबाद।