पहले टेस्ट मैच में मात्र छत्तीस रनों पर सिमटी टीम इंडिया के साथ-साथ मानो सबकी उम्मीद खत्म-सी हो गई थी। आस्ट्रेलिया के दिग्गज खिलाड़ियों, जैसे रिकी पोंटिंग, शेन वार्न ने यहां तक कह दिया था कि भारत के हाथ से गई यह शृंखला। लेकिन उन लोगों का अनुमान चकनाचूर हो गया। आज नतीजा कुछ अलग ही है।
इसमें जीत के लिए बहुत संघर्ष किया टीम इंडिया ने! कई खिलाड़ी चोटिल हो गए। जैसे चेतेश्वर पुजारा, अश्विन, हनुमान बिहारी, बुमराह, रोहित, नवदीप सैनी। लेकिन उसके बाद भी टीम ने आत्मविश्वास नहीं खोया और मैदान पर डटी रही, लड़ती रही। इतना ही नहीं, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद सिराज, वाशिंगटन सुंदर जैसे जिन खिलाड़ियों पर नस्लीय टिप्पणियां की गर्इं, वही सब इस ऐतिहासिक जीत के सितारे बने।
इस प्रकार भारत ने आस्ट्रेलिया के घरेलू मैदान पर खेल कर बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी जीत लिया और गाबा का सत्तर साल पुराना रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। अब भारतीय टीम इंग्लैंड के साथ होने वाली शृंखला के लिए तैयार हो रही है पूरे जोश के साथ। जाहिर है, आस्ट्रेलिया में जीत के बाद मजबूत हौसले का असर उसके भावी प्रदर्शन पर पड़ेगा।
’सचिन आनंद, खगड़िया, बिहार</p>
अभिव्यक्ति की जगह
राजा, रजवाड़ा, रियासत और राज सिंहासन! लगता है कि ये सब बीते दिनों की शब्दावली हैं। लेकिन क्या सच में ऐसा है? कहने को आज भले ही जनता अपने शासक को चुनती है, मगर उन सबके चलने की पद्धति एक ही है। लोकतंत्र अगर राजतंत्र का ही एक रूप लगने लगे तो यह दुख की बात है। राजा के खिलाफ पुराने जमाने में लोग कुछ नहीं बोल सकते थे।
आज भी कई देशों में ऐसे हालात हो चुके हैं। अब थाइलैंड को ही ले लीजिए। सुश्री अचन नामक एक तिरसठ वर्षीया बुजुर्ग महिला को तैंसालीस साल जेल की सजा सुनाई गई। उसका जुर्म इतना था कि सोशल मीडिया में उसने राजा के आलोचना वाले आॅडियो को सिर्फ साझा किया था।
पिछले साल ही बैंकाक में सरकार और राजा को मिले अनावश्यक अधिकारों के खिलाफ लंबा धरना प्रदर्शन हुआ था। लेकिन इस घटना से तो यही साबित होता है कि जमीनी स्तर पर कुछ नहीं बदला। सच यह है कि विश्व की अधिकांश आबादी आज भी अभिव्यक्ति की वास्तविक आजादी के लिए तरस रही है।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड</p>
