चीन बेचैन है। वह पहले कभी इतना असहज नहीं दिखाई दिया। वह हमेशा से एक चुप-चरित्तर विस्तारवादी मुल्क रहा है। चीन को हमारे देश का मीडिया अक्सर ‘चालाक’ विशेषण से शोभित करता है। एक संज्ञा के रूप में चीन के साथ चालाकी का विशेषण वैसे भी खूब फबता है। चालाक से कम चीन को कोई भी नकारात्मक शब्द शृंगारित ही नहीं करता। ‘धूर्त’ शब्द अवश्य ही करता है। मगर ‘धूर्तता’ को राजनय की मर्यादा के मद्देनजर ‘चालाक’ शब्द से बदल कर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में सादगी से काम चलाया जाता है। इसलिए चीन को धूर्ततावादी चालाक कपटी मुल्क कहना ज्यादा मुफीद लगता है। चीन हमेशा से प्रतिक्रियावादी मुल्क रहा है। वैसे भी चालाकियां वाचाल नहीं होतीं और धूर्तताएं मुखर नहीं होतीं। वे अपने विस्तारवादी मंसूबों के मकड़जाल को चुप-चरित्तर होकर सतत बुनने में मगन रहती हैं और तब-तक बुनती रहती हैं जब-तक कि उस जाल का विस्तार अपने शिकार की जद तक नहीं पहुंच जाए। चीन द्वारा पाक के ग्वादर बंदरगाह तक बनाया जा रहा ‘चीन-पाक कोरिडोर’ और ब्रह्मपुत्र नदी पर सीमावर्ती क्षेत्र में बांध का निर्माण उसकी कपटपूर्ण नीतियों का स्पष्ट उदाहरण है। मगर चीन इस समय अपने को घिरा हुआ महसूस कर रहा है।

उसकी ताजादम बौखलाहट बयां भी कर रही है कि वह अमेरिका, जापान और भारत के हिंद महासागर में संयुक्त नौसेना अभ्यास से बड़ा बेचैन है। उसकी यह बेचैनी अभूतपूर्व है तभी तो वह भूटान सीमा पर डोकलाम में भारत से भिड़ने-भिड़ाने तक को आमादा है और रोज नई-नई धमकियां परोस रहा है! जबकि चीन-भूटान सीमा विवाद और भारत की भूटान सीमा की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता एक अति प्राचीन मसला है यह बात चीन भी बेहतर जानता है। वैसे देखा जाए तो डोकलाम क्षेत्र चीन के लिए अपने बुरे वक्त का एक निवेशित हथियार बन रहा है जिसे वह अपनी भारत-अमेरिका और जापान की घेराबंदी से आजिज होकर अब भारत के खिलाफ दबाव के हथियार के रूप में उपयोग करना चाहता है। न सिर्फ एक हथियार के रूप में, बल्कि कश्मीर में उसे तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करना चाहता है जबकि चीन बेहतर जानता है कि भारत-पाक का कश्मीर विवाद भूटान के डोकलाम क्षेत्र के विवाद से कोई मेल ही नहीं रखता है।

वैसे चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों के बावजूद व्यावसायिक हितों को भी बखूबी समझता है। युद्ध में उलझना उसका शगल तो है मगर अपने धंधे-पानी के मुताबिक उसकी स्थायी नीति नहीं। इसलिए भारत जैसे मुल्क से बेवजह या पाकिस्तान की कीमत पर उलझ कर वह अपना धंधा-व्यवसाय खोना तो कतई पसंद नहीं करेगा। इसीलिए वह ‘आतंक की कूटनीति’ को अपना रहा है, दोनों देशों के बीच भय का माहौल पनपा रहा है। फिर भी यदि वह वाकई युद्ध के हालत पैदा कर गुजरता है तो उसे एक सनकी और उन्मादी देश ही कहा जाएगा। ऐसा विस्तारवादी उन्मादी देश विकसित व विकासशील दुनिया और सहअस्तित्व की भावना को कृत-संकल्पित विश्व समुदाय के लिए एक खुली धमकी ही समझा जाएगा, इस सत्य से कोई इनकार नहीं कर सकता।
’राजेश सेन, अंबिकापुरी एक्सटेंशन, इंदौर<br />गरिमा के विरुद्ध
देश को शिष्टाचार का पाठ पढ़ाने वाले और माननीयों की कुर्सी पर बैठे जनप्रतिनिधि जब खुद बदसलूकी करना शुरू कर दें तो यह चिंता का विषय है। सोमवार को लोकसभा में जो कुछ हुआ वह निंदनीय है। संसद में हंगामा होना कोई नई बात नहीं पर लोकसभा अध्यक्ष के चेहरे पर कागज के टुकड़े फेंकना नियमों को सख्त बनाए जाने की मांग कर रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मीडिया की मौजूदगी में जब सांसद अध्यक्ष महोदया से बदसलूकी कर सकते हैं तो उनका आम जनता के साथ व्यवहार कैसा रहता होगा।
’सलमान खान सैफी, कानपुर</p>