कोरोना काल में जैसा देखने को मिला कि लोगों के स्वास्थ्य को ठीक रखने से जरूरी कुछ नहीं है। लोग अगर स्वस्थ नहीं रह पाते हैं, स्वस्थ वातावरण नहीं मिल पाता है तो फिर समस्त संसाधन दिखावे मात्र की ही वस्तु रह जाती है।

ऐसे में स्वास्थ्य सुविधा में 137 फीसद की बढ़ोतरी एक सुखद संकेत है। इसे बढ़ा कर विकसित देशों की तरह लोगों को और सुरक्षित स्वस्थ जीवनयापन करने जैसा वातावरण देने का प्रयास होना चाहिए। कई यूरोपीय देशों में स्वास्थ्य खर्च के रूप में जीडीपी का नौ फीसद तक खर्च किया जाता है, लेकिन भारत में एक फीसद ही खर्च हो पाता है।

स्वास्थ्य के अतिरिक्त अन्य मुद्दे के संदर्भ में देखें तो बजट आम लोगों के लिए बहुत अच्छे रूप में नहीं आई है। अन्य कई वस्तुओं सहित पेट्रोल, डीजल और मोबाइल का दाम बढ़ा दिया गया है। यह सब जानते हैं कि इन सब चीजों से जनसाधारण सीधा जुड़ा हुआ है। इससे आम लोगों के लिए यह बजट कोई लाभकारी साबित नहीं होने जा रहा है।

सबसे दुखद प्रकरण तो यह है कि बजट घाटे के रूप में सकल घरेलू उत्पाद का साढ़े नौ फीसद घाटा हो गया है। यह अकल्पनीय घाटा है। भरपाई के लिए कहा जा रहा है कि अस्सी हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ेगा। एक ओर सरकार अधिक से अधिक निजीकरण पर बल दे रही है, दूसरी ओर जीडीपी का घाटा भी बढ़ रहा है। ऐसे में देश की वित्तीय व्यवस्था बहुत सुरक्षित नहीं मानी जा सकती। सरकार को अपने अनावश्यक खर्चे को चिह्नित करने की जरूरत है। जनसाधारण का विकास ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
’मिथिलेश कुमार, भागलपुर, बिहार

प्रदूषण की ध्वनि

एक अध्ययन में पाया गया है कि अगर कोई व्यक्ति एक दिन में एक घंटे से ज्यादा समय तक अस्सी डेसीबल से ज्यादा तेज आवाज में संगीत सुनता है, तो उसकी सुनने की क्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे बहरेपन की संभावना काफी बढ़ जाती है। ईयरफोन या हेडफोन से कोई संगीत सुनता है तो ओर भी ज्यादा भारी नुकसान कानों और दिमाग को पहुंच सकता है। उपवास पेट को दुरुस्त करता है और रसना (जीभ) का कम प्रयोग इंसान को मानसिक शीतलता देता है।

कुछ लोगों की आदत होती है बेवजह हर वक्त चीख-चीख कर बोलना और शांतिमय माहौल को खराब करना। कुछ तो अपने कार्यस्थलों में भी ऐसा करते देखे जा सकते हैं। कुछ लोगों की आदत होती है ऊंची आवाज में संगीत-गीत सुनना और कुछ की आदत होती है बेवजह ही गाड़ियों के हॉर्न बजाना।

ऐसे लोगों को याद रखना चाहिए कि वे ऐसा कर ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं। धरती पर बढ़ता जल और वायु प्रदूषण सभी प्राणियों के लिए खतरनाक और बहुत-सी जानलेवा बीमारियों की जड़ भी हैं। इन दोनों तरह के प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए उपाय भी किए जाते हैं और लोगों को इनके प्रति जागरूक करने के लिए अभियान भी चलाए जा रहे।

लेकिन एक ऐसा प्रदूषण भी है, वह भी कुछेक बीमारियों की जड़ है और वह है ध्वनि प्रदूषण। इसके प्रति कोई भी गंभीर नहीं दिखता। ध्वनि प्रदूषण मानसिक तनाव को बढ़ाने और सुनने की क्षमता को भी कम कर सकता है। हर समय इयरफोन से संगीत सुनना कानों की सुनने की क्षमता को कम करता है।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर, पंजाब</p>