हमारे देश में सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने और अपनी मांगे मनवाने के लिए संविधान से जनता को कई अधिकार प्राप्त हैं, जिनके तहत वह आंदोलन-धरने आदि कर सकती है।

लेकिन जब राजनीतिक स्वार्थों के तहत देश के हित में किए गए सही फैसलों और नीतियों का विरोध करने के लिए इन अधिकारों का गलत प्रयोग होने लगे तो समझना चाहिए कि देश का लोकतंत्र गलत दिशा में जा रहा है, जो पूरे देश के लिए गहरा संकट बन सकता है।

जब लोकतंत्र में जनता देश के बड़े-बड़े फैसले अपनी मर्जी के हिसाब से करवाना चाहे तो फिर बड़े-बड़े मुद्दों पर सख्त सुधारों की गुंजाइश ही नहीं बच पाती। जनता द्वारा सरकार को अपने हठ के आगे झुकाना ही क्या असली लोकतंत्र है? कोई देश जनता के मूड से नहीं चल सकता। हमें यदि वोट डालने का अधिकार मिला है तो सरकार द्वारा देश हित में लिए गए कड़े फैसलों का समर्थन करने की समझदारी भी दिखानी होगी।

विरोधी पार्टियों का भी उद्देश्य सर्वप्रथम देशहित होना चाहिए, न कि केवल सरकार और सरकार के फैसलों का विरोध करना। यदि हमारे देश में लोकतंत्र का स्वरूप विकृत होता चला गया तो इसका हश्र भी लोकतंत्र के जन्मदाता- एथेंस जैसा ही होगा। एथेंस में जिस एरेना में लोकतांत्रिक फैसले लिए जाते थे उसे पार्थेनन कहा जाता है। इसे लोकतंत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है।

दुनिया के कई बड़े लोकतांत्रिक देशों के नेता यहां जाकर अपनी तस्वीरें खिंचवाते हैं। लेकिन ग्रीस के दर्शन शास्त्र में लोकतंत्र की बहुत आलोचना की गई है। संविधान का पूर्णतया पालन करके ही लोकतंत्र को निरंकुश होने से बचाया जा सकता है।

सत्ता के भूखे नेता लोकतंत्र का दुरुपयोग कर देश को पतन के गर्त में ढकेलें, इससे पूर्व हमें सजग होकर इनकी साजिशों को समझने और उनसे दूर रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा हमें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का कब और कितना इस्तेमाल करना है, यह भी जनता को ही समझदारी पूर्वक समझने की आवश्यकता है।
’रंजना मिश्रा, कानपुर

हिंसक होते बच्चे

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दसवीं क्लास के एक छात्र ने कक्षा में बैठने की सीट को लेकर हुए विवाद में अपने सहपाठी को गोली मार कर हत्या कर दी। ऐसी ही एक घटना में कुछ साल पहले गुजरात में सातवीं कक्षा के बच्चे ने स्कूल में छुट्टी करवाने के लिए तीसरी क्लास के एक बच्चे की हत्या कर दी थी, जिसे वह जानता भी नहीं था।

इस तरह की घटनाएं समाज को झकझोरने देती हैं। सवाल है कि आखिर बच्चे इतने हिंसक क्यों होते जा रहे हैं। आज प्रतिस्पर्धा के दौर में हम बच्चों को सिर्फ पेशेवर कौशल सीखने पर जोर दें रहें और दूसरी ओर समाज के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित करने वाली नैतिक शिक्षा की उपेक्षा कर रहे हैं। ऐसे बच्चे एक मशीन रूपी रोबोट की भांति कार्य तो कर लेंगे, लेकिन वह कार्य परिवार, समाज के लिए कितना सार्थक रहेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। नैतिकता ही हमें एक सभ्य मानव बनाती हैं। लोगों में इसकी निरंतरता बनाएं रखना ही एक सभ्य, सशक्त, तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक प्रगतिशील समाज का निर्माण करेगा।
’दिनेश शाह, बैढ़न, सिंगरौली (मप्र)