इस संदर्भ में ‘परिधान बनाम काम’ (संपादकीय, 1 जुलाई) पढ़ा। बिहार सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा जारी जींस और टी-शर्ट न पहनने संबंधी फरमान से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकारों को वैयक्तिक क्षमता और उसके काम से ज्यादा कर्मचारियों के पहनावे की चिंता है। यह फैसला अपरिपक्व सोच का संकेत है।
किसी भी प्रकार का निषेध एक प्रकार के विकल्प की मांग करता है। देश में इस तरह के प्रकरण रह-रह कर किसी न किसी राज्य से उछलते ही रहते हैं। हालांकि पहनावा पूर्ण रूप से वैयक्तिक मसला नहीं है। भारत में पहनावा या परिधान समय विशेष से बंधे हुए हैं और जहां कहीं भी हमें सामाजिक बंधनों से मुक्ति मिलती है, वहीं हम अपनी सुविधा और शौक का खयाल करना शुरू कर देते हैं। कर्मियों की उत्पादकता और कर्तव्य की ओर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है।
शिक्षकों के परिधान की बात करें तो प्राचीन काल में शिक्षक केवल एक धोती में पढ़ा लिया करते थे। समय कुछ बदला तो धोती-कुर्ता एक साथ आ गए। फिर धोती ने विदा ले ली और कुर्ता-पाजामा की जोड़ी बनी। इसके बाद तरक्की कुछ तेजी से हुई और बहुत से बदलाव एक साथ हुए। महिलाओं के प्रकरण में पहनावे में परिवर्तन बहुत तेज गति से हुआ।
बहरहाल, 2019 की तरह ही फिलहाल बिहार सरकार का यह आदेश प्रयोगात्मक ज्यादा लग रहा है, क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार के ड्रेस कोड को लागू करने पर बल नहीं दिया गया है। लगता है सरकार जनता और कर्मियों के मन की टोह लेना चाह रही है, लेकिन ऐसे कामों का आखिर कोई लाभ नहीं है और सरकार को चाहिए कि काम पर ध्यान दे और परिधान का चयन जनता के लिए छोड़ दे।
अजय कुमार ‘अजेय’, करावल नगर।
वादा खिलाफी
यह सच है कि इक्कीसवीं सदी के भारत में आज भी वोट दशकों पुरानी परंपराओं पर दिया जा रहा है। चुनाव आते ही जाति और धर्म की बात होने लगती है, जबकि रोजगार और महंगाई जैसे मुख्य मुद्दे पीछे रह जाते हैं। शिक्षित होने के बावजूद भी लोगों को बैनर, प्रचार और चिकनी-चुपड़ी बातों में ऐसे उलझा दिया जाता है कि वास्तविक मुद्दे भूल कर वे भी जाति और धर्म के आधार पर वोट डाल देते हैं।
अक्सर यह देखा गया है कि राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणा पत्र में किए गए वादे को पूरा नहीं करते हैं। फिर भी हम सब वादा खिलाफी पर सवाल न पूछकर नेताओं की सभाओं में भीड़ लगाकर खड़े हो जाते हैं और माननीय नेताजी इसे अपनी नीतियों की जीत मानते हैं। इसलिए अब युवाओं को अपने अधिकार, रोजगार और महंगाई के प्रति और ज्यादा सजग होना पड़ेगा।
मणि मोहन कुमार, दिल्ली।
जल संचय
वर्षा ऋतु में देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ से हुई तबाही का हृदय विदारक तस्वीर सामने आ रही है, तो गर्मी के मौसम में कई हिस्सों से जल संकट की डरावनी तस्वीर सामने आती है। अगर गर्मी के मौसम में जल संकट की समस्या से बचना है, तो बारिश की हर एक बूंद को धरती के गर्भ तक पहुंचाना होगा। भूमिगत जल दोहन में हम दुनिया में प्रथम स्थान पर हैं।
प्राकृतिक जल स्रोतों की अनदेखी की वजह से उनमें से बहुत सारे विलुप्त होने के कगार पर आ गए हैं। कई स्थानों पर नदियों, पोखर आदि का अतिक्रमण हो चुका है। देश के इक्कीस बड़े शहर शून्य भूजल स्तर के बेहद करीब पहुंच चुके हैं। दिन प्रतिदिन भूमिगत जल स्तर नीचे जा रहा है। भूमिगत जल का स्तर वर्षा के पानी से ही बढ़ता है।
आज के विकास के दौर में भी हम सिर्फ बारह फीसद बारिश के जल का उपयोग कर रहे हैं। शेष जल बर्बाद हो रहा है। अगर हम बारिश की बूंदों को धरती के गर्भ तक पहुंचाने में सफल रहे तो सालो भर हमें पेयजल, घरेलू काम और सिंचाई कार्यो में पानी की कमी नहीं होगी।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया।
पक्षियों का ज्ञान
पक्षियों की श्रवण शक्ति, दृष्टि तीव्र होती है। पक्षियों को वर्षा का बहुत ज्ञान होता है। जैसे चिड़िया का धूल में लोटना, चीलों का वृत्ताकार होकर आकाश की ओर ऊंचा उड़ना भी वर्षा का सूचक होता है। उनके पास ऋतु संबंधी, वर्षा संबंधी, मौसम संबंधी, दिशा संबंधी ज्ञान होता है। कुछ लोग पक्षियों की चाल-ढाल देखकर भी मौसम का अनुमान लगा लेते हैं।
तीतर के पंख जैसी लहरदार बदली आकाश में छाई हो तो वर्षा अवश्य होगी। पक्षियों का अकस्मात ज्यादा संख्या में एकत्रित होकर कोलाहल करना, पशुओं में उनके व्यवहार में यकायक परिवर्तन होना आदि कई संकेत देते आए हैं। इनकी अजीब हरकतें आकाशीय घटना जैसे ग्रहण आदि और भूगर्भीय हलचल के होने के पूर्व देखी गई है। अगर उनकी इन हरकतों पर गौर किया जाए तो निश्चित तौर पर जान-माल की हानियों से बचा जा सकता है।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार।
वेस्ट इंडीज के बिना
दो बार के क्रिकेट विश्व कप चैंपियन वेस्ट इंडीज की टीम इस बार एक दिवसीय विश्व कप क्रिकेट में नहीं खेलेगी। इस बार भारत में होने वाले विश्व कप के लिए वेस्ट इंडीज की टीम क्वालीफाई नहीं कर पाई है। 1975 और 1979 में वेस्ट इंडीज लगातार दो बार विश्व चैंपियन बना था। 1983 में भी कैरीबियन टीम फाइनल में पहुंची थी, जहां कपिल देव के नेतृत्व में भारतीय टीम ने उसे पछाड़ कर विश्व कप जीता था।
वेस्टइंडीज की टीम एक बार टी20 विश्व कप में भी चैंपियन रही है। विश्व कप में क्वालीफाई नहीं करने से दुनिया भर में वेस्ट इंडीज के सभी समर्थक निराश हैं। वेस्ट इंडीज के बिना विश्व कप क्रिकेट तो ऐसी बात हो गई जैसे ब्राजील के बिना विश्व कप फुटबाल। वेस्ट इंडीज की असफलता के लिए इस टीम के खिलाड़ियों से ज्यादा देश का क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जिम्मेदार है। अगर गलतियों से सबक लिया जाए तो संभव है कि दुनिया क्रिकेट के मैदान पर वेस्ट इंडीज का जलवा देखती रहेगी।
अनित कुमार राय टिंकू, धनबाद।