देश में प्रतिदिन चार सौ पंद्रह लोग सड़क दुर्घटना में जान गंवाते है, वाकई चिंताजनक है। सड़क परिवहन और राज्यमार्ग मंत्रालय सड़क दुर्घटनाओं में पचास फीसद की कमी लाना चाहता है। लेकिन यह कार्य केवल सरकारी तंत्र नहीं कर सकता, जब तक जनता खुद सड़क सुरक्षा के प्रति सजग होकर न दिखाए।

सरकार वाकई सड़क दुर्घटना के आंकड़ों को कम करना चाहती है तो पहले हादसों के कारणों का पता लगाना होगा। राज्यमार्ग छोड़ दिए जाएं तो बिना मानक बने गति-अवरोधक भी हादसों का कारण बनते हैं। यही नहीं, सड़क किनारे अतिक्रमण और बसे छोटे-मोटे गावों से होने वाले आवागमन भी हादसे के आंकड़ों को बढ़ाने की वजह है।

मंत्रालय के इस प्रयास में राज्य सरकारों को दिलचस्पी दिखानी पड़ेगी। स्थानीय पुलिस- प्रशासनिक अधिकारी अपने-अपने क्षेत्र के दुर्घटना बाहुल्य इलाकों को चिह्नित करके सुरक्षा के पूरे इंतजाम कर लें और सुगम यातायात के लिए चौकसी बढ़ाएं तो कुछ हद तक राहत मिलेगी।

प्रश्न यह है कि राजमार्गों पर लगातार बढ़ती दुर्घटनाओं के बावजूद यातायात पुलिस की उपस्थिति क्यों नहीं दिखती। अगर राज्यों की मुख्य सड़कों पर पुलिस दिखती भी है तो वह खुद की जिम्मेदारियों के प्रति बेपरवाह रहती है। ऐसे में आवश्यक है कि पूरे साल सड़क सुरक्षा के लिए प्रयास किए जाएं। सड़क सुरक्षा माह का सही मायने तब समझ आएगा, जब खुद जनता लापरवाही का परिचय देने से बचेगी और जोखिम मोल लेने की आदत में सुधार लाएगी।
’अवनिंद्र कुमार सिंह, वाराणसी, उप्र

प्रगति पथ पर

बीते कुछ वर्षों से हम देख रहे हैं कि भारतवर्ष में राजनीति को लेकर किसी दो मुख्य राजनीति पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच लड़ाई-झगड़ा और साथ ही बहुत सारी गैरजरूरी बहसबाजी भी हो जाती हैं। खासकर जब भी देश में चुनाव के समय आते हैं तो देश के बड़े राजनीतिक पार्टी के नेता आम जनता के बीच कुछ ऐसी हिंसा पैदा करने वाली बातें छोड़ देते हैं, जिसकी वजह से देश में बहुत बड़े हंगामे से लेकर मारपीट या फिर हत्या जैसी चौंकाने वाली घटनाएं भी हो जाती हैं। देश के कानून या फिर व्यवस्था पर नजर रखते हुए राजनीतिकों के ऐसे विवाद पैदा करने वाली बातों पर कठोर निगरानी रखना बहुत जरूरी है।

अक्सर चुनावों के पहले अलग-अलग पार्टियों के बड़े नेता एक ही उद्देश्य मन में रख कर प्रचार में भाग लेते हैं कि आने वाले दिनों में देश की आम जनता उनकी पार्टी को वोट दे और विकास की ओर अपने एक कदम आगे बढ़ाए। लेकिन जब वही नेता दूसरे स्थान पर जाते हैं तो उनकी भाषा और बोलने की तरीके कुछ अलग रूप ले लेते हैं और जिसकी वजह से देश की राजनीति में घमासान मच जाता है। नेताओं के भाषणों में कुछ ऐसी बातें भी आती हैं, जिसकी वजह से देश की विभिन्न जाति-जनजाति के बीच टकराव और छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई भी शुरू हो जाती है।

दरअसल, नेता जब भी राष्ट्र को संबोधित करते हुए निर्वाचन प्रचार समिति गठन करते हैं तो कुछ अच्छे विचार और अच्छे नीतिगत गठबंधन पर नजर रखते हुए विचार प्रक्रिया में जाना चाहिए। हम एक स्वाधीन राष्ट्र में रहते हैं और सभी लोग प्रगति के लिए कभी भी पीछे नहीं हटते हैं। इसी वजह से आज की तारीख में भारत उन्नति की एक नई दिशा की ओर आगे बढ़ रहा है। हमें सिर्फ इस बात से मतलब होना चाहिए कि हमारा देश प्रगति पथ पर आगे का सफर तय करे।
’चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम</p>