मोदी सरकार ने अपनी पहली पारी में लगभग तीन साल पहले देश में ‘वन नेशन, वन टैक्स’ का सपना देखते हुए ऐतिहासिक फैसला, आर्थिक सुधार और विभिन्न टैक्सों के जंजाल से उद्योगों, व्यापारियों और कारोबारियों को मुक्ति दिलाने के लिए जीएसटी व्यवस्था को आरंभ किया था।
समय के साथ कानूनों और व्यवस्था में थोड़ा बहुत परिवर्तन भी जरूरी होता है। जीएसटी लागू होने के तीन साल बाद देश की आर्थिक व्यवस्था पर कितना और कैसा प्रभाव पड़ा, इस पर सबके अपने-अपने विचार हो सकते हैं, लेकिन अब मोदी सरकार को इस पर भी गौर करना चाहिए कि क्या पेट्रोल, डीजल और बिजली के बिल भी जीएसटी के अंतर्गत नहीं आने चाहिए!
सरकार ने बीमा पॉलिसियों की किस्त पर जीएसटी लगा कर क्या उचित किया है? गरीब और मध्यम परिवार अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बीमा की पॉलिसी लेते है और बहुत मुश्किल से बीमा की किश्त भरते हैं।
’राजेश कुमार चौहान, जालंधर
देश में ‘प्रवासी’
तेरह जुलाई के अंक में ‘शब्दनामा’ में सत्यकेतु सांकृत ने प्रवासी शब्द को लेकर जो लेख लिखा है, मैं उससे सहमत हूं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है, फिर एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रवासी कैसे कह सकते हैं? आखिर वे भारतीय हैं, कोई विदेशी तो नहीं!
इसी तरह 1947 में देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं को ‘रिफ्यूजी’ या शरणार्थी कहा गया। वह भी गलत था। आखिर वे भारत से भारत में ही आए थे! फिर वे शरणार्थी कैसे हो गए? बंटवारा दोनों तरफ के कुछ महत्त्वाकांक्षी नेताओं की वजह से हुआ और भुगतना पड़ा आम आदमी को, जिसे शरणार्थी और ‘रिफ्यूजी’ जैसे अपमानजनक नामों से पुकारा गया।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>
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