एक बच्चे में न जाने कितनी संभावनाएं होती हैं पर हमारा समाज धीरे-धीरे उन संभावनाओं को खत्म कर देता है। उसे एक वस्तु की तरह पहले से तय नियम-कायदे के अनुरूप जीने को मजबूर कर देता है। जब मैं अपने समाज को देखता हूं तो पाता हूं कि हमारे परिवार-समाज का सबसे बड़ा सपना सबसे बड़ा नौकर बनने का है। आइएएस अफसर के बाद ही किसी और सपने को शायद इज्जत दी जाती हो। ‘सभी तैयारी कर रहे हैं तो तू भी कर’ वाली मानसिकता इंसान को एक मशीन बना देती है।
थोड़ा और गौर से जब अपने समाज को देखता हूं तो पाता हूं कि दरअसल हम अब भी गुलामी की मानसिकता से नहीं उबरे हैं। हम अपने बच्चों को नौकर ही बनाना चाहते हैं और जो नौकर रुतबे में जितना ऊपर होता है उसकी इज्जत उतनी ज्यादा होती है। हम अपने बच्चों के लिए एक ‘सेफ जॉब’ चाहते हैं, जोखिम उठाने से डरते हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि देश में नवाचार (इनोवेशन) न के बराबर है। हर क्षेत्र में आप यह देख सकते हैं।
कोई प्रोफेसर है तो कॉपी-पेस्ट कर के किताब लिख रहा है; हजारों किताबें एक साल में आती हैं और गायब हो जाती हैं।
आज अमेरिका अगर विश्व शक्तिहै तो उसकी एक बड़ी वजह नवाचार है। इसी के दम पर उसकी दुनिया में धाक है। पर जैसा कि मैंने पहले कहा, हम एक गुलाम मानसिकता वाले देश में पैदा हुए हैं। हमारे मध्य वर्ग के समाज का सपना कभी अपने बच्चे को जुकरबर्ग या बिल गेट्स बनाना नहीं होता।
’अब्दुल्लाह मंसूर, जामिआ, नई दिल्ली</strong>