जनसत्ता 30 सितंबर, 2014: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दा उठा कर फिर सिद्ध कर दिया कि जब-जब उनके अपने देश में आंतरिक खलबली/ अशांति मची होती है, तो वे इस मुद्दे को उछाल कर भड़ास निकालने का भरसक यत्न करते हैं। उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान बातचीत के जरिए इस समस्या का समाधान निकालने के मकसद से काम करने के लिए तैयार है। अपने भाषण में उन्होंने और भी बहुत सारी बातें कहीं जो वे पहले कई बार कह चुके हैं और बदली परिस्थितियों में जिनकी अब कोई सार्थकता नहीं रह गई है।
समस्या दो देशों के बीच की है। इसमें बेवजह अनाधिकारिक रूप से तीसरे (अलगाववादी) पक्ष को शामिल कर हम समस्या को सुलझाते नहीं, उलझाते ही हैं। पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की वार्ता को उस समय मजबूरी में रद्द करना पड़ा था जब दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने हुर्रियत नेताओं से मुलाकात की थी। इस अनुचित मुलाकात पर पाक प्रधानमंत्री अपने भाषण में एक शब्द भी नहीं बोले।
दरअसल, कश्मीर मुद्दे को उछाले रखने में कइयों की रोटियां सिक जाती हैं। कश्मीर में पिछले दिनों बाढ़ ने जो कहर बरपाया, उसकी किसी को चिंता नहीं है। जानकारों का मानना है कि वहां के बाढ़-पीड़ितों का ध्यान बंटाने के लिए ही यह मुद्दा उठाया जा रहा है। भारतीय सेना के उत्कृष्ट राहत कार्य ने लोगों का जो दिल जीता है, उससे अलगाववादियों के साथ-साथ पाक-नेता भी परेशान हैं। इसीलिए किसी न किसी बहाने इस मुद्दे को जिंदा रखना अब इन सबकी मजबूरी है।
शिबन कृष्ण रैणा, अलवर
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