आज बात होनी चाहिए किसानों की, बेरोजगारी की, सीमा सुरक्षा की, जीडीपी की और अन्य कई ऐसे मुद्दों की, जिनसे इस वक्त हमारे देशवासियों को जूझना पड़ रहा है। लोगों के घर में खाने को अनाज नहीं है, साफ-सफाई की कोई सुविधा नहीं है। एक तरफ कोरोना का खोफ है लोगों के मन में, पर बात हो रही है दीपिका, कंगना, रिया की। हम यह कैसे भूल सकते हैं कि यह पहली बार हुआ है जब संसद में सारे विपक्ष को किनारे कर कोई विधेयक पास हुआ और उसके अगले दिन सरकार को उस बिल के लिए सफाई देनी पड़ी। सरकार द्वारा अखबारों में इश्तहार छपे अपनी बात को सही साबित करने के लिए कि यह बिल अमीरों के लिए नहीं, गरीबों, किसान के हक में है।
बहरहाल, हाल ही में संसद में पास हुए तीन किसान विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून का रूप ले लेंगे। लेकिन इनका बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है और किसानों का विरोध जारी है। हालांकि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि सरकारी खरीद और एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था जारी रहेगी। किसान अपनी फसल को बाजार में भी अपनी सहूलियत और मुनाफे के हिसाब से बेच पाएंगे। लेकिन किसानों को डर लगता है कि सरकार धीरे-धीरे एमएसपी और सरकारी खरीद की परंपरा खत्म कर देगी। हालांकि सरकार ने तेईस फसलों के लिए एमएसपी का निर्धारण किया है।
हालांकि वह फूड कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया की मदद से केवल गेहूं और चावल की खरीद करती है। पिछले कुछ समय से वह दलहन की भी खरीदारी कर रही है। लेकिन किसानों को लगता है कि धीरे-धीरे ये खरीदारी भी बंद कर दी जाएगी। नीति आयोग की 2015 की एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि वह हर मौसम में बड़े पैमाने पर हर वस्तु की एमएसपी पर खरीदारी करे।
इसके अलावा, किसानों की एक बड़ी आशंका यह है कि आलू,प्याज, अनाज, दलहन, तिलहन को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से हटा दिए जाने और इनके भंडारण पर लगी रोक को हटाने की नई प्रणाली एक तरफ संसाधनों से विहीन किसानों के लिए घाटे का सौदा बनेगी तो दूसरी ओर ग्राहकों के लिए लगभग लूट की स्थिति बनेगी। सरकार को किसानों की इन आशंकाओं का समाधान करना चाहिए।
’निधि जैन, लोनी, गाजियाबाद, उप्र