न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के रहते हुए भी किसानों को फसलों की लागत मूल्य केवल सरकारी मंडियों से प्राप्त हो पाती थी।

फिर भी अतिरिक्त खर्च यानी यातायात आदि के लिए उन्हें ऋणी होना पड़ता था। ऐसे में एमएसपी को व्यवहार में खत्म करना और सरकारी मंडियों में उत्पाद बेचने की व्यवस्था का अंत होने पर खरीदार यानी महाजन और व्यापारी के हाथों किसान मनमाने कीमतों पर बेचने को मजबूर होंगे जो आगे चल कर अन्याय पर आधारित एक व्यवस्था बनाएगा।

इसलिए सरकार को फिर से इस विधेयक पर विचार करना चाहिए। किसान किसी भी देश और समाज की जान होता है। उसका नुकसान सबका नुकसान होगा।
’मनकेश्वर महाराज ‘भट्ट’, मधेपुरा, बिहार</p>