पिछले दिनों एक चैनल पर एक कार्यक्रम में बहस के दौरान कांग्रेस के एक नेता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। संयोग से इस कार्यक्रम को मैंने भी देखा था। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने दो बार पानी पिया था और एक बार सीने पर हाथ भी रखा था। इससे लगता है कि उन्हें बहस के दौरान ही सीने में तकलीफ हुई थी, लेकिन शायद इस बात का आभास नहीं हुआ कि यह उनके लिए जानलेवा साबित होगी और उन्होंने उसे गंभीरता से नहीं लिया।
राजीव त्यागी की ऐसी असामयिक मौत निश्चित ही विचलित करने वाली है, लेकिन उनका निधन क्या बहस में उत्तेजना के कारण हुआ, यह जरूर विचारणीय है और बहस का विषय हो सकता है। बहस के दौरान दूसरे भागीदार जिस प्रकार आक्रामक थे और उन पर व्यक्तिगत आक्षेप और छींटाकशी कर रहे थे, उससे लगता है कि वे काफी आहत हो गए थे। हालांकि इस मामले में एक भागीदार और चैनल के एंकर के खिलाफ लखनऊ में एफआइआर दर्ज की गई है।
सवाल है कि इस घटना का दोष किसे दें? उस एंकर को जो बहस के लिए ऐसे विषयों को चुनते हैं और प्रवक्ताओं को उत्तेजित करते हैं और इसे टीआरपी बढ़ाने का जरिया बनाते हैं। ज्यादातर चैनलों पर होने वाली बहसों में भी लगभग ऐसा ही देखने को मिलता है।
जब टीवी चैनल नहीं थे तब भी राष्ट्रीय विषयों पर चचार्एं, परिचचार्ओं और वाद-विवादों के माध्यम से हुआ करती थीं, जिसमें हर वक्ता को एक निश्चित समय में अपने बात कहनी होती थी और फिर अंत में प्रतिस्पर्धी वक्ता की बातों को काटने या उत्तर देने का फिर से समय दिया जाता था। हर वक्ता अपनी बात पूरी शालीनता से प्रस्तुत करता था। अब क्या उसी तर्ज पर टीवी चैनलों पर बहसें नहीं की सकती?
’यशवंत गोरे, भोपाल</p>