नवाब मलिक महाराष्ट्र सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री हैं। समय-समय पर मोदी सरकार की नाकामियों की आलोचना करते रहते हैं। उन पर प्रवर्तन निदेशालय ने धन शोधन का मामला बना कर गिरफ्तार कर लिया है। अपने विरोधियों का मुंह बंद कराने तथा राजनीतिक लाभ उठाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा ईडी, सीबीआई, आयकर विभाग आदि का दुरुपयोग करने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले पूर्व वित्तमंत्री, पी चिदंबरम तथा उनके बेटे, पंजाब के मुख्यमंत्री के एक रिश्तेदार को खनन मामले में गिरफ्तारी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समर्थकों पर छापे डलवा कर गैर-कानूनी नगदी बरामद करना आदि मामले सत्ता पक्ष के बारे में बहुत कुछ कहने वाले हैं।
सवाल है कि क्या गैर-कानूनी काम करने वाले सारे व्यक्ति वही हैं जो सरकार का विरोध करते हैं। कल तक जिन पर मुकदमे चल रहे थे और अब वे सत्ता पक्ष के साथ मिल गए हैं, वे दूध के धुले कैसे हो गए। उन पर ईडी, आयकर विभाग या सीबीआई का छापा क्यों नहीं पड़ता। इलेक्ट्रानिक मीडिया को जो कुछ परोसा जाता है वो रात दिन उसी तरह सरकार के पक्ष को ध्यान में रखकर विरोधियों की बखिया उधेड़ते रहते हैं।
क्या लोकतंत्र में सरकार की नीतियों का विरोध करना देशद्रोह का मामला बनता है! क्या सत्ता पक्ष जो कुछ चाहे विपक्ष के बारे में बोल सकता है और विपक्ष अपनी भूमिका भी नहीं निभा सकता। सात साल के मोदी प्रशासन के दौरान एक भी ऐसा मामला नहीं आया, जबकि भाजपा के किसी भ्रष्ट मंत्री के खिलाफ ऐसी कार्रवाई हुई हो जैसे कि नवाब मलिक तथा पी चिदंबरम के खिलाफ की गई है। मोदी सरकार को लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं को लागू करना चाहिए, राजनीतिक दमन लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होता।
शाम लाल कौशल, रोहतक