काफी दिनों से प्रशांत किशोर के कांग्रेस में आने का शोर-शराबे अब खत्म हुआ। प्रशांत किशोर ने स्पष्ट कर दिया कि वे कांग्रेस में नहीं शामिल हो रहे हैं। साथ ही उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में सुधार का सुझाव देकर असंतुष्ट खेमे का मूक समर्थन कर दिया। प्रशांत किशोर को एक सफल राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में देखा जाता है, जो अपनी सफल चुनावी रणनीतियों की वजह से कई राजनीतिक दलों को जीत दिलवा चुके हैं।

शायद वे भी कांग्रेस पार्टी जैसी डूबती नाव में बैठ कर अपनी छवि धूमिल नहीं करना चाहते होंगे, तभी उन्होंने कांग्रेस में आने की सभी अटकलों पर विराम लगा दिया। इस घटना से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को कुछ सीख जरूर लेनी चाहिए कि जब सभी पार्टी हितैषी और शुभचिंतक कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर टिपण्णी कर रहे हैं, तो उस बात में कुछ तो दम होगा ही। इसलिए कांग्रेस को एक बार फिर आत्ममंथन करने की जरूरत है और अगर 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को कुछ सकारात्मक परिणाम देखने हैं, तो जी 25 में से कुछ वरिष्ठ नेताओं को कांग्रेस की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। इसके दो फायदे होंगे। एक तो कांग्रेस को परिवारवाद से मुक्ति मिलेगी और कांग्रेस के बिखराव को रोका जा सकेगा।

गांधी परिवार को शीर्ष नेतृत्व से अपने आप को कुछ समय के लिए दूर कर लेना चाहिए तथा दूर रह कर पार्टी का सहयोग करना चाहिए। इससे जनता के बीच कांग्रेस की परिवारवाद वाली छवि को तोड़ने में मदद मिलेगी और मतदाता नए नेतृत्व को परखने के लिए फिर से कांग्रेस को अवसर दे सकता है। कांग्रेस देश की एक राष्ट्रीय स्तर की मजबूत पार्टी रही है उसने शायद कई राजनीतिक रणनीतिकार देश को दिए होंगे, उसे रणनीतिकारों को कुछ खास जरूरत नहीं पड़ने वाली।
राजेंद्र कुमार शर्मा, रेवाड़ी, हरियाणा

कश्मीर में सख्ती

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हट गया, राज्य दो भागों में विभाजित हुआ: लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में, ‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्म रिलीज हुई और देश के दर्शक पण्डितों पर हुई ज्यादतियों और नृशंस अत्याचार से रूबरू हुए। प्रधानमंत्री हाल ही में जम्मू गए और वहां विकास की कई करोड़ की योजनाओं का सूत्रपात किया। आशा की जा रही थी कि अब घाटी में शांति स्थापित होगी और आतंकी वारदातों में कमी आएगी। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा। आए दिन कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाएं हो रही हैं। यानी आतंक की जड़ें अब भी घाटी में गहरे तक समाई हुई हैं।

समय आ गया है जब खुफिया तंत्र को और मजबूत और जिहादियों से निपटने के लिए कोई और कारगर योजना बनाई जाए। पंडितों पर हुए अनाचार के लिए जिम्मेदार दोषियों को चिह्नित करने के लिए एक जांच आयोग गठित किया जाए, ताकि दोषी दंड के भागीदार बनें।
शिबन कृष्ण रैणा, अलवर