प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाएं कोई नई नहीं है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा का पर्चा लीक होने के बाद वहां खासा बवाल मच गया। इस मामले में अब तक उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ की ओर से करीब तीस आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। परीक्षा को रद्द भी कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने रासुका और गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई करने के सख्त निर्देश दिए हैं। जांच में सामने आया है कि पर्चा परीक्षा केंद्र से लीक नहीं हुआ। निस्संदेह बिना किसी भीतरी संपर्क के इस तरह से पर्चा लीक नहीं किए जा सकते।

पर्चा छपने से लेकर सेंटर तक पहुंचने के हर स्तर को सुरक्षित बनाया जाता है। परीक्षा-नियंत्रक हर स्तर पर कड़ी निगरानी रखते हैं। इतनी चौकसी के बाद भी हमारी व्यवस्था विफल हो जाती है और पर्चा लीक होते हैं। प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों हो जाता है और कहां पर चूक हो जाती है? दरअसल, पर्चा लीक में व्यवस्था के अंदर के ही किसी जानकार आदमी का हाथ होता है। ऐसे कामों में हमेशा अपने भेदिए ही आगे रहते हैं और पैसे की खातिर इस नापाक काम को अंजाम देते हैं।

परीक्षा-संचालन के उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य से मैं वर्षों तक जुड़ा रहा हूं। किसी भी परीक्षा-संचालन एजेंसी के लिए किसी भी परीक्षा को सुचारु, निष्पक्ष और समयबद्ध तरीके से आयोजित कराना हमेशा एक चुनौती भरा मसला रहा है। दरअसल, किसी भी सामान्य या प्रतियोगी-परीक्षा के आयोजन की प्रक्रिया कुछ चरणों से होकर गुजरती है।

इन चरणों में पर्चा बनाने वालों की नियुक्ति, प्रेस में उनकी छपाई, पैकिंग, दूर-दराज के क्षेत्रों के परीक्षा-केंद्रों में मुद्रित प्रश्नपत्रों के पैकेट भेजना आदि शामिल है। इस सारी प्रक्रिया में अत्यधिक गोपनीयता और विश्वास की भावनाएं शामिल रहती हैं। चूंकि पूरी प्रक्रिया कई चरणों से होकर गुजरती है, इसलिए इस काम में कई लोग शामिल रहते हैं और परस्पर विश्वास में किसी भी तरह का उल्लंघन या भितरघात हानिकारक और विनाशकारी परिणाम दे सकते हैं।

परीक्षा नियंत्रक मान कर चलता है है कि चयनित लोग विश्वसनीय/ प्रतिष्ठित विद्वान हैं और उनकी सत्यनिष्ठा संदेह से परे है। मगर अतीत में ऐसे भी उदाहरण सामने आए हैं, जहां ऐसे ही विद्वानों ने प्रलोभनवश पर्चा लीक कर दिए और परीक्षा-प्रणाली की पवित्रता का घोर अपमान किया। परीक्षा-नियंत्रक की भी अपनी सीमाएं होती हैं।

वह केवल अपने भरोसेमंद अधीनस्थों को काम सौंप और निर्देश दे सकता है कि काम ईमानदारी से और समय पर संपन्न हो। कभी-कभी परीक्षा नियंत्रक के अधीन काम करने वाले विश्वसनीय कर्मचारी भी छोटे-मोटे लाभ के लिए बाहरी तत्त्वों से सांठगांठ कर इस प्रकार की गतिविधियों को अंजाम देते हैं। इस तरह व्यवस्था में ही छिपे गैरजिम्मेदार तत्त्वों की वजह से परीक्षा तंत्र बदनाम होता है। हमारे नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों में गिरावट भी इस तरह की मनोवृत्ति के मूल कारण हैं, जिनसे हमारे समाज को बहुत नुकसान पहुंचाता है, चाहे वे आर्थिक घोटाले हों या फिर पर्चा-लीकेज घोटाले।

पर्चा लीक करने वालों और उनके सहयोगियों के बीच नापाक गठजोड़ को मिटाने का समय आ गया है। प्रश्नपत्र वितरण प्रणाली में मौजूद कमियों को भी दूर करने की सख्त आवश्यकता है। संबंधित अधिकारियों को प्रश्नपत्रों को तैयार कराने, छपाई और वितरण की पूरी प्रक्रिया में अत्यधिक गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए।
’शिबन कृष्ण रैणा, दुबई