वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में महिला सुरक्षा के प्रति उदासीनता कहीं न कहीं महिलाओं के खिलाफ अपराध एवं उनके प्रति भेदभाव को बढ़ावा दे रही है। प्रतिदिन अनगिनत मामले संज्ञान में आते रहते हैं जो अमानवीय होते हैं। इससे न सिर्फ महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित शासन-प्रशासन की नीतियों पर प्रश्न-चिह्न लगता है, बल्कि हमारे समाज में पनप रहे विकृतचित्त व्यक्तियों की मानसिकता का भी पता चलता है।

महिलाओं से संबंधित बढ़ते अपराधों, जिनमें दहेज उत्पीड़न, कार्यस्थल पर भेदभाव, सार्वजनिक स्थानों पर छेड़छाड़ और उन पर तेजाबी हमला आदि आज गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। इसके चलते आज महिलाएं घर से निकलते वक्त चिंतित रहती हैं कि कहीं उनके साथ कोई अनहोनी घटना न हो जाए।

उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की नीति तथा महिला हेल्पलाइन और एंटी रोमियो स्क्वायड का गठन प्रथम दृष्ट्या अच्छा है, लेकिन इसका व्यावहारिक असर क्या है!

सच यह है कि सरकार की सारी नीतियां दम तोड़ रही हैं और महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। आज अपराधियों के भीतर न तो कानून का भय है और न समाज का। सरकार द्वारा बनाई गई महिला सुरक्षा संबंधी नीतियों की सार्थकता के लिए शासन को तथा जिम्मेदार व्यक्तियों को महत्त्वपूर्ण और ठोस कदम उठाते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन निष्ठा से करना चाहिए और समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों के साथ महिला सुरक्षा को लेकर मुहिम चलानी चाहिए।
’शशिभूषण बाजपेयी, बहराइच, उप्र