नेपाल में ओली सरकार का गिरना कोई बड़ी बात नहीं। बड़ी बात यह है कि उनकी पार्टी को प्रतिनिधि सभा में जबर्दस्त बहुमत हासिल था और सभा को भंग करने की सिफारिश किए जाते वक्त भी इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया था। संसद में बहुमत को लेकर कोई परेशानी नहीं थी तो प्रतिनिधि सभा की बैठक में ओली सरकार की जगह बड़ी आसानी से सीपीएन के ही किसी अन्य नेता की अगुआई में दूसरी सरकार बनाई जा सकती थी।
इसके बावजूद संसद का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार ने उसे भंग कर देश पर समय से पहले चुनाव लादने का फैसला कर लिया, जो संसदीय लोकतंत्र की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत है। ऐसा कदम उठाने वाले शीर्ष राजनेता को किसी भी लोकतंत्र में शायद ही गंभीरता से लिया जा सके। दरअसल, ओली के इस फैसले से भारत के इस पुराने आरोप की पुष्टि हुई है कि घरेलू राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए वे राष्ट्रवादी भावनाओं का उन्माद पैदा करने की कोशिश करते रहे हैं।
’हेमंत कुमार, गोराडीह, भागलपुर, बिहार
निजी बनाम सियासी
पश्चिम बंगाल की प्रदेश भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष सुजाता खान के टीएमसी में शामिल होने पर उनके पति भाजपा सांसद ने नाराज होकर उन्हें तलाक देने के नोटिस देने की घोषणा की है। इस तरह का व्यवहार घरेलू हिंसा के समकक्ष कृत्य के साथ-साथ अमानवीय और संवेदनहीन प्रकृति बर्ताव की श्रेणी में भी आता है। किसी पति द्वारा राजनीतिक मतभेद के कारण पत्नी को तलाक देने के लिए कानूनी नोटिस देने की बात करना अपने आप में ही गैरकानूनी कृत्य कहा जायगा। संवैधानिक दृष्टि से ऐसे कृत्य से मौलिक अधिकारों का हनन होता है।
एक परिवार में अलग-अलग सदस्य अलग राजनीतिक विचार रखने के लिए स्वतंत्र हैं और सबको असहमत विचार रखने का सम्मान करना चाहिए। इतिहास से लेकर वर्तमान में भी एक ही परिवार के लोग विभिन्न सियासी दल के बतौर सदस्य और पदाधिकारी रह चुके हैं और हैं भी। लेकिन यह विचित्र है कि सुजाता के पति को लोकतंत्र का बुनियादी सिद्धांत समझना जरूरी नहीं लगता है।
’बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, तराना, उज्जैन, मप्र
बेमानी चुनाव
ताजा घटनाक्रमों पर नजर डालने से ऐसा लगता है इजराइल को चार साल के अंतराल के बजाय हर छह महीने में चुनाव कराना चाहिए। नए स्थिति-विकास के मुताबिक आगामी तेईस मार्च को एक बार फिर वहां चुनाव होने जा रहा है। यानी दो साल में चौथा। यह सुनने में तो अजूबा लगता है, मगर है हकीकत। यही अब वहां की नियति बनने जा रही है। एक सौ बीस सीटों वाले कनेसेट में इकसठ सीट चाहिए बहुमत के लिए। पिछले तीन बार के नतीजों से लगता नहीं कि इतनी सीटें किसी को मिलने वाली हैं।
सभी पार्टियां तीस से पैंतीस के बीच ही रहेंगी। उस देश की विडंबना यह है कि वहां हर पार्टी की एक ही विचारधारा है। वह है उग्र राष्ट्रवाद, क्योंकि इस देश का निर्माण ही हुआ है फिलिस्तीनियों का हक को मार कर। इसीलिए इसे हमेशा युद्ध की स्थिति में रहना है। जाहिर है, ऐसे में अन्य विचार रखने वाले दलों के लिए इस देश में कोई स्थान नहीं है।
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड</p>