कोई भी वैज्ञानिक इस बात को कभी नहीं मानता कि उससे त्रुटि नहीं हो सकती है और वह आलोचनाओं से परे है। जब हम वैज्ञानिक सोच की बात करते हैं तो यही चाहते हैं कि हम लकीर के फकीर न रहें और निरंतर अपने ज्ञान का मूल्यांकन करते रहें।
बहरहाल, इधर कुछ वर्षों से देश में कुछ लोग हैं जो किसी ने मुंह खोला नहीं कि उस पर कभी सेना का तो कभी वैज्ञानिकों का या फिर किसी और वर्ग का अपमान करने का आरोप जड़ देते हैं। जबकि कोई भी देख सकता है कि आजकल ऐसे लोगों की ओर से किसानों पर किस तरह निराधार आरोप बेहिचक लगा दिए जा रहे हैं। यह बात समझ से परे है कि अगर कोई सीमा पर दुश्मन की घुसपैठ के प्रति आगाह करना चाहता है तो उसे सेना का विरोधी बताने की कोशिश क्यों की जाती है। अगर कोई टीके को लेकर कोई चिंता प्रकट करता है तो उसे वैज्ञानिकों का विरोधी क्यों कहा जाता है?
अगर हम अतीत पर नजर डालें तो सैकड़ों बार ऐसा हुआ है जब कोई कंपनी बाजार में जो दवा बड़े दावों के साथ लाई थी, बाद में उसके गंभीर इतर प्रभावों को देखते हुए उसे प्रतिबंधित करना पड़ा। ऐसे में स्वाभाविक है कि जब भी कोई नई दवा या टीका सामने आए, उसको लेकर कोई ऐसा प्रश्न शेष न रह जाए, जिसका उत्तर हमारे पास न हो। देशभक्ति का अर्थ चुपचाप गलत को स्वीकार कर लेना नहीं है।
देशभक्ति का मतलब है प्रत्येक ऐसे कार्य की जांच-पड़ताल करना, जिससे देश और देशवासियों का अहित हो सकता है। यही वजह है कि अतीत में जब किसी ने डीआरडीओ द्वारा बनाए गए किसी टैंक या लड़ाकू विमान या अन्य रक्षा सामग्रियों पर सवाल उठाया, तो उसे कभी किसी ने यह नहीं कहा कि वह वैज्ञानिकों का विरोधी है।
’सुभाषचंद्र लखेड़ा, न्यू जर्सी, अमेरिका