देश की अर्थव्यवस्था के लगभग तीनों क्षेत्र आर्थिक मार का शिकार हो चुके हैं। सरकार का राहत पैकेज समाचारों के माध्यम से जनता को सुनने में जरूर आया, लेकिन उसके क्रियान्वयन की रफ्तार अभी तक देखने को नहीं मिली। सरकार को जरूरत है। जिस प्रकार राजनीतिक दल चुनावी ‘जनसंपर्क’ करते हैं, उसी तरह व्यापक रूप से जमीनी स्तर पर जनता से सीधे रूबरू होने की जरूरत है, ताकि राजनीतिक स्तर पर सचमुच की जागरूकता और चेतना का विकास हो सके और मतदाता पूरी परिपक्वता से सही उम्मीदवार को वोट दे सके।
’अनुराग माथुर, अमझेरा, धार, मप्र
मानसिकता की जड़ें
पितृसत्तात्मक समाज की जड़ें वर्तमान में इतनी गहरी होती जा रही हैं कि महिलाओं को पुरुष रूपी वंशबेल की उर्वर जमीन पर माना जाता है। प्राचीन काल से वर्तमान तक उनकी कार्यसंपादन और कुशलता को नकारा जाता रहा है। समाज में उनकी योग्यता को तरजीह न देकर अयोग्यता का पर्दा डाल दिया जाता है और आत्मविश्वास को ध्वस्त कर दिया जाता है।
उन्हें इतना भी अधिकार नहीं होता है कि वे अपनी कार्यनीति के नियंताओं के प्रति मुखालफत का भाव प्रदर्शित कर सकें। जन्म लेते ही ‘लड़की हुई तो खर्चा, लड़का हुआ तो चर्चा’ के भाव पर अमल कर उनका गला दबा दिया जाता है। इसलिए महिलाओं को गुलदस्ते की तरह साजो-सामान का रूप धारण नहीं कर गृहक्षेत्र, कार्यक्षेत्र, समाज में अपने वजूद को सर्वोच्च स्थान पर ले जाने का प्रयास करना चाहिए।
’रुचि सैनी, महू, मप्र