आज हम जितने भी सफल लोगों के बारे में बात करते हैं, उसमें अक्सर कुछ लोग यह कहते हैं कि ऐसा बनना उनकी किस्मत में लिखा था… तो वे बन गए। पर किसी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर वे इस मुकाम तक पहुंचे कैसे? प्रकृति ने हर इंसान समान बनाया है। कोई ऊंचा-नीचा, बड़ा-छोटा नहीं होता। अंतर सिर्फ इतना होता है कि किसने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया, किसने समय के महत्त्व का सही मायनों में सदुपयोग किया और किसने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस सुनहरे पल को कुछ कर दिखाने के जुनून में बदला।
ऐसे बहुत से अंतर हैं, जिसमें आप, हम और सभी इसका सही उदाहरण देख सकते हैं। हर व्यक्ति की जिंदगी में संघर्ष लाजिमी है। संघर्ष एक छोटा शब्द है, पर जिस व्यक्ति ने जीवन में आए संघर्षों को अपना लिया और उसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया, वही असल मायने में सफल व्यक्ति है। समय हमेशा एक साथ चलता रहता है, कभी आगे-पीछे नहीं होता। जिसने सही मायनों में समय को पहचान लिया, वही आगे चल कर इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपनी पहचान लोगों के दिलो में छोड़ जाते हैं। कहते हैं कि जिंदगी के संघर्ष हमें बहुत कुछ सिखा जाते हैं। ’सृष्टि मौर्य, फरीदाबाद, हरियाणा
मशीन की मार
मशीनीकरण से भले ही काम की सुगमता हो गई हो, मगर इससे मानव श्रम उपेक्षित हो गया है। यही वजह है कि कामगार मजदूर दो जून की रोटी के लिए रोजगार की तलाश में भटकते हैं। सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिए मदद जरूर करती है, मगर काम के अभाव में लोगों की आवश्यकता केवल खाने की पूर्ति तक ही सीमित रहती है। ऐसे में इन वर्ग के लोगों का जीवन एक संघर्ष की तरह गुजर जाता है।
बदले जमाने में काम करने के औजारों में भी बड़ा बदलाव आया है। पुराने जमाने में कुदाल, फावड़ा, गेती, तगारी, सब्बल आदि घर-गृहस्थी चलाने के माध्यम थे, मगर मशीनीकरण ने इन सब पर जंग लगा दी है। इससे शारीरिक श्रम से घर-गृहस्थी चलाने वालों पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा हो। दो जून रोटी कमाना अब सहज नहीं रह गया उनके लिए। सरकार भी बदलाव को जमीनी हालात के परिप्रेक्ष्य में नहीं लेती। मशीनों से काम हो तो मजदूरों को भी उचित दाम जैसे कार्यक्रम बड़े पैमाने पर पारदर्शिता के साथ चलाए जाने की जरूरत है। ’अमृतलाल मारू ‘रवि’, दसई, धार, मप्र