कुछ दिन पहले दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं हुर्इं। एक यह कि उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के संकल्प के साथ योगी आदित्यनाथ ने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और दूसरा यह कि सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या मामले पर कहा कि दोनों पक्ष मुद्दे को आपसी बातचीत से सुलझाने का प्रयास करें। इन सबके बाद तमाम खबरिया चैनलों पर वाद-विवाद हो रहे हैं और मुद्दा फिर गर्म हो गया है। एक पक्ष का कहना है कि ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर यहीं बनाएंगे’, और दूसरा पक्ष बाबरी विध्वंस को लेकर आवेश में है और मस्जिद निर्माण से पीछे नहीं हटना चाहता। 1986 के बाद से यह ग्यारहवां मौका है जब विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश की जा रही है। यहां मेरे मन में प्रश्न उठ रहा है कि इक्कीसवीं सदी के इस आधुनिक दौर में भी क्या यह विवाद उचित है? अधिकतर लोग इसे आस्था का मुद्दा मानते हैं और इसीलिए यह संकट उत्पन्न हो गया है।

एक विचारक ने कभी कहा था कि ‘धर्म का विश्वास शोषित लोगों के दिमाग में गरीबी और शोषण-उत्पीड़न सहने के लिए अफीम के रूप में काम करता है।’ अयोध्या विवाद इस कथन को पूरी तरह सही साबित करता है। जैसे ही इस विवाद को हवा लगती है, दोनों समुदाय के लोग बुनियादी मुद्दों (गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि) को छोड़कर धार्मिक रूप से लामबंद होने लगते हैं और उनके सामने बस मंदिर या मस्जिद महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। वे यह नहीं समझते कि धर्म कभी अनाज बन कर पेट में नहीं पहुंच सकता जो कि मनुष्य की सबसे बड़ी जरूरत है।
एक पक्ष का कहना है कि बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं जो साबित करते हैं कि यहां मंदिर था। यह कोई अनोखी बात नहीं है। इतिहास में कई ऐसी घटनाएं हुर्इं जब शासक ने अपने धर्म के मुताबिक कार्य किए हैं। मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गर्ईं, मस्जिदों को तोड़कर कुछ और बनाया गया, स्तूपों को तोड़ा गया। राम का जन्म उसी विवादित स्थान पर हुआ था, यह साबित नहीं हो सका है। रामायण की कहानी के पुरातात्त्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। इतिहास तभी पूर्ण माना जाता है जब साहित्यिक साक्ष्य के साथ साथ पुरातात्त्विक अवशेषों के भी साक्ष्य मिलें। कुछ प्रमाणित सत्य हैं जैसे- रामायण की कहानी उत्तर वैदिक काल की लगती है जिसे गुप्तकाल तक आते-आते संहिताबद्ध किया गया और भारत में मंदिरों का निर्माण भी गुप्तकाल से शुरू हुआ। लेकिन उत्तर वैदिक काल से कोई ऐसा पुरातात्त्विक साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है जो राम की कहानी की पुष्टि करे।

एक और तथ्य यह है कि एक पक्ष मुसलिमों को भारत में विदेशी मानता है क्योंकि वे बाहर से आए। 712 ईस्वी के बाद मुसलिमों का आगमन माना जाता है। एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि 2000 ईसा पूर्व के आसपास से आर्यों का आगमन भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ जो सनातन धर्म मानने वाले बने। तो इस आधार पर हिंदू भी उतने ही विदेशी हैं जितने मुसलिम! एक ऐतिहासिक तथ्य यह है कि शुंग वंश के शासकों ने हजारों स्तूप तोड़े और ब्राह्मण धर्म को भारत में फिर से जमीन दिलाने का प्रयास किया। अगर आज बौद्ध धर्मावलंबी उन स्तूपों की मांग करने लगें तो उन्हें क्या जवाब दिया जाएगा? इन सब तर्कों के आधार पर समझा जा सकता है कि वस्तुत: यह मुद्दा ही व्यर्थ है। लोगों को समझना होगा कि आस्था के कारण उत्पन्न हुए इस संकट से भी बड़े कई और संकट हैं जिनके समाधान तलाशने की आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है।
गीता कृष्णन, मुजफ्फरपुर, बिहार</p>