उन्होंने और एक बात कही कि अमेरिका में कोई भी सरकार बने, उनके देश के प्रति सभी का एक ही रवैया होगा। उनकी इन बातों से लगता है कि वे प्रतिबंधों के कारण परेशान हैं। अगर दुनिया थोड़ा आगे बढ़ कर इनसे बात करे तो शायद ये मुख्यधारा में आ जाएं। ईरान और उत्तर कोरिया इसलिए परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे हैं कि दुनिया वालों ने इनके साथ शायद आवश्यकता से अधिक बेरुखी दशार्या है। जरा सी नरमी बरतने और वातार्लाप करने पर इनके रुख में बदलाव आ सकता है। दुनिया के शीर्ष और ताकतवर देश अगर कोशिश करें, तो उसमें हर्ज क्या है?
’जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड

कसौटी पर समानता

स्वतंत्रता और समानता क्या है और किन लोगों के लिए है? ‘सब एक समान है’ का नारा हम सबने सुना है, पर क्या सच में सब एक समान हैं? ये ऐसे सवाल हैं, जो आज भी बहुत-सी महिलाओं के मन में उठते हैं।

स्वतंत्रता का अर्थ होता है अपने विचारों को स्वतंत्र होकर सबके सामने रखना। पर आज भी महिलाओं को अपने विचार सहज होकर सामने रखने की पूरी आजादी नहीं है। स्त्रियों को पढ़ने की आजादी मिली, नौकरी करने का मौका मिला।

ऐसे कई अवसर मिले, जिससे वह अपने आप को साबित कर सके और हर बार उसने ऐसा किया भी। लेकिन शादी के बाद आमतौर पर उन्हें घर बैठा दिया जाता है। कभी घर की देखभाल करने के लिए तो कभी बच्चों को संभालने का अकेला दायित्व देकर। वह इसके इस सबके खिलाफ कुछ नहीं बोल पाती। आखिर इस सामाजिक विभाजन का स्रोत क्या है कि बराबर क्षमताओं के बावजूद स्त्री को घर के दायरे में समेट दिया जाता है?

इस तरह बात करें समानता की तो आज भी पुरुष ही स्त्रियों पर हावी है, यह हम किसी भी क्षेत्र में देख सकते हैं। जबकि हर क्षेत्र में मौका मिलने पर स्त्रियों ने खुद को और अपनी काबिलियत को साबित किया है। इसके बरक्स कभी ऐसा दिन नहीं जाता है जब हम यह न सुनें कि महिला का बलात्कार, छेड़छाड़ न हुआ हो या उसके साथ घरेलू हिंसा नहीं हुई हो। सवाल है कि फिर महिला-पुरुष की समानता की बात किस आधार पर कही जाती है?

सच यह है कि महिला आज भी रात को बाहर अकेले और पूरी तरह सुरक्षित नहीं जा सकती है। अगर जा रही है तो उसे मजबूरन किसी को साथ लेकर जाना पड़ता है, फिर वह एक बच्चा ही क्यों न हो। वह साथ जाने वाला हर हाल में लड़का होना चाहिए। हम फिलहाल इसी सीमित स्वतंत्रता को देखते और जीते आ रहे हैं।
’दीपिका, दिल्ली</p>