देश और समाज में मनुष्य के बरक्स जैसे-जैसे पूंजी का महत्त्व और वर्चस्व बढ़ता गया, वैभव के प्रदर्शन की लालसा और लालच भी उसी अनुपात में बढ़ते गए हैं और परिणामस्वरूप काले धन के साम्राज्य का विस्तार भी होता गया है। इस समांतर साम्राज्य ने अर्थव्यवस्था के साथ समाज के नैतिक तानेबाने को ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भ्रष्टाचार और कालाधन एक सिक्के के दो पहलू हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के पूर्व से इन दोनों मुद्दों पर देश में उद्वेलन का ज्वार उफान पर था जिसे समझते हुए भारतीय जनता पार्टी ने विदेश में जमा कालेधन को वापस लाने और पंद्रह-पंद्रह लाख रुपए हर देशवासी के खाते में जमा करने की बात कही थी जिसे बाद में उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने ही जुमला ठहरा दिया था। सरकार गठन के बाद कालेधन के संदर्भ में कुछ कानून बनाए गए जिनमें जेल भेजे जाने तक के दंड के प्रावधान किए गए हैं, हालांकि विदेश से कालाधन लाने में कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं मिली है, न इन कानूनी बदलावों के तहत किसी को कोई सजा दी गई है।

 

देश के भीतर के कालेधन को घोषित करने की योजना के तहत एक लाख पच्चीस करोड़ रुपए की राशि लगभग पैंसठ हजार लोगों ने घोषित की है। देश में और देश के लोगों के विदेश में कालेधन की राशि को लेकर अलग-अलग अनुमान हैं पर इस राशि का अनुमान हर वह व्यक्ति सहजता से लगा सकता है, जिसने मकान, प्लॉट या फ्लैट खरीदने का सौदा किया है। वास्तविक खरीद और दस्तावेज में दर्ज राशि का अंतर क्रेता से विक्रेता को अंतरित होते ही श्वेत से कालेधन में रूपांतरित हो जाता है। रोजमर्रा के जीवन में रिश्वत, डॉक्टर / इंजीनियर / सनदी लेखाकार / वकील आदि को दी जाने वाली फीस, दवाइयां, किराना, होटल आदि ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां आय-व्यय का हिसाब रखने या रसीद / बिल / पावती देने का रिवाज नहीं है। सामान्यत: ऐसी आय, जिस पर कर की अदायगी नहीं की गई है, उसे कालाधन माना जाता है। साथ ही हवाला, नशा, तस्करी, हथियार आदि अवैध व अनैतिक व्यवसायों में भी बड़े पैमाने पर कालेधन का उत्पादन होता है। हाल ही में मोदी सरकार ने कालेधन पर प्रहार की दृष्टि से 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने का निर्णय लिया है। यह एक स्वागतयोग्य कदम है और मौजूदा कालेधन के स्तर, तस्करी व्यवसाय, आतंकियों के आर्थिक स्रोतों व नकली नोटों के भंडारों को तात्कालिक तौर पर चोट पहुंचाएगा। देश में इसके पूर्व भी इस तरह के कदम उठाए गए हैं पर कालेधन पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकी है।

यह प्रयास कितना कारगर होगा इसका आकलन भविष्य करेगा ही पर 1000 के नोट बंद करके 2000 के नोट जारी करने से आगे के लिए कालेधन का संचय करने वालों की राह सुगम हो गई है। देश में बहुलांश आबादी के बैंक खाते नहीं है, गृहणियां भी घरेलू बचत को कठिन समय के लिए छुपा कर रखती हैं। ऐसे लोगों की राशि सुलभता से उन्हें प्राप्त हो और वे अनावश्यक भयभीत न हों, यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है।
’सुरेश उपाध्याय, गीता नगर, इंदौर</p>