योगेंद्र यादव जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक हैं और देश की बड़ी-बड़ी पार्टियों को जनमानस के राजनीतिक रुझान का परिचय देते रहे हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी के ताजा घटनाक्रम में वे कुछ तल्ख हकीकतों को भांपने में चूक गए लगते हैं। वे जानते रहे हैं कि कांग्रेस शासन की बदनामी, सत्ता विरोधी रुझान, भाजपा की लफ्फाजी और जीत के लिए अनैतिक हथकंडे अपनाने और इन प्रमुख दलों के खिलाफ घनीभूत निराशा के विपरीत आदमी नामक पार्टी नामक संगठन एक उम्मीद का नाम है। इस संगठन का नेतृत्व एक ऐसे सुशिक्षित, विनम्र, तकनीकी व्यक्ति के रूप में सामने आया जो देश में सूचनाधिकार जैसे प्रमुख अधिकार को लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुआ, जिसने आयकर उपायुक्त पद का त्याग भी सामाजिक कामों के लिए कर दिया और भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नेतृत्व की इस छवि को दिल्ली की जनता ने पसंद किया जिसे भांप कर देश भर के गैर भाजपा, गैर कांग्रेसी दलों ने विधानसभा चुनाव में उन्हें खुला समर्थन दिया।

यह सच है कि आम आदमी पार्टी अपनी नीतियों के प्रति साफ नहीं है और केवल भलमनसाहत के साथ-साफ सुथरा प्रशासन देने के नाम पर एक अस्पष्ट राजनीतिक सोच का जुड़ाव है। इस पार्टी को चुनाव में सभी रंगों के राजनीतिक सोच की शुभकामनाएं मिली हैं और उन सभी को उम्मीद रही है कि वे उनके सोच को बल देंगे। आम आदमी पार्टी के विभिन्न सोच के सदस्यों को भी ऐसी ही आशा रही होगी और दिल्ली में सरकार बनते ही वे उसे फलीभूत देखना चाहते होंगे। पार्टी के विस्तार की रणनीति और कार्यप्रणाली पर भी भिन्न विचार हो सकते हैं। पर एक ऐतिहासिक जीत के बाद जब नेतृत्व को काम का श्रीगणेश करना था उसी समय पार्टी में संगठन और विचारधारा वाले पत्र का सार्वजनिक होना एक बड़ी भूल है। खेद है कि यह भूल ऐसे लोगों की तरफ से हुई है जो दूसरों को राजनीतिक ज्ञान बांटते रहे हैं। जो काम पार्टी के गठन के समय किया जाना था या जो मुद््दा सरकार के कार्य-मूल्यांकन तक स्थगित रखा जाना चाहिए था उसे उस समय उठाना जब सारी जनता उम्मीदों और विरोधी कौतूहल से देख रहे हों तब इसे पीठ में छुरा घोंपना ही कहा जाएगा। जब यह उन लोगों ने उठाया है जिन्हें विजय के बाद पद न मिले हों तब इसे सैद्धांतिक विरोध के रूप में नहीं पहचाना जा सकता। उसके बाद भी यह सैद्धांतिक मतभेद रहता अगर पत्र को लीक करके दोहरे चरित्र वाली भाजपानुमा हरकत न की गई होती।

व्यक्ति केंद्रित राजनीति के इस दौर में अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के चेहरे के रूप में सामने आ चुके हैं और ताजा-ताजा चोट खाए विरोधियों के निशाने पर हैं जिनमें से कुछ तो अपनी कुटिल राजनीति के लिए ही जाने जाते हैं। ऐसे समय केजरीवाल की छवि को खराब करने वाली किसी भी गतिविधि का जनसमर्थन विरोधी गतिविधि के रूप में जाना जाना स्वाभाविक है। पिछले एक साल से चुनी हुई सरकार से वंचित दिल्ली की जनता को जब अपनी पसंद की सरकार मिली हो तब ‘प्रथम ग्रासे मक्षिकापात:’ जैसी स्थिति लाने वाले को आम आदमी पार्टी के सदस्यों का समर्थन न मिलना स्वाभाविक है।
इस बात को भूलने की उम्मीद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण से नहीं की जा सकती थी। हालांकि एनडीटीवी के कार्यक्रम में भावुकता भरे स्वर में उन्होंने किसी विद्वेष भावना से इनकार किया है लेकिन विघ्नसंतोषी चटपटी खबर के भूखे मीडिया को सातों दिन चौबीस घंटे के समाचार चाहिए होते हैं, या पैदा करने पड़ते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये लोग बिन्नी या शाजिया इल्मी के रूप में नहीं जाने जाना चाहेंगे।

वीरेंद्र जैन, रायसेन रोड, भोपाल

 

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