सरकार ने जनता के कड़े विरोध के बाद आखिरकार एनक्रिप्शन नीति का विवादास्पद मसौदा वापस ले लिया जिसमें सोशल मीडिया समेत सभी तरह के संदेशों को 90 दिन तक सुरक्षित रखने को अनिवार्य किया गया था। दूरसंचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यहां संवाददाताओं से कहा कि अब नया मसौदा जारी किया जाएगा। पिछले मसौदे की जिन बातों से संदेह पैदा हुआ है उन्हें ठीक कर फिर से आम जनता के समक्ष रखा जाएगा।
एन्क्रिप्शन नीति का मसौदा सोमवार को जारी किया गया था। जिसमें व्यावसायिक इकाइयों, दूरसंचार परिचालकों और इंटरनेट कंपनियों को लिखित संदेश को उसी रूप में 90 दिन तक सुरक्षित रखने का प्रावधान किया गया और कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजंसियां जब भी इन्हें दिखाने को कहेंगी उन्हें यह मुहैया कराना होगा। ऐसा नहीं करने पर कानूनी कार्रवाई होती।
एन्क्रिप्शन नीति के इस मसौदे से निजता पर हमले की आशंका को लेकर उपजे विवाद को देखते हुए सरकार ने मंगलवार सुबह एक नए परिशिष्ट के जरिए साफ किया कि वाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर, भुगतान गेटवे, ई-वाणिज्य और पासवर्ड आधारित लेन-देन को इससे अलग रखा गया है। इसके कुछ ही घंटे बाद सरकार ने एन्क्रिप्शन नीति मसौदा वापस लेने का फैसला किया।
मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए फैसलों के बारे जानकारी देने के लिए आयोजित संवाददाता सम्मेलन में प्रसाद ने कहा कि सोमवार शाम जारी राष्ट्रीय एन्क्रिप्शन नीति का मसौदा वापस ले लिया गया है।
यह मसौदा सरकार की अंतिम राय नहीं है और इसे जनता से टिप्पणी और सुझाव के लिए सार्वजनिक किया गया था। उन्होंने कहा- मैं बिल्कुल साफ करना चाहता हूं कि यह सिर्फ मसौदा है न कि सरकार की राय। लेकिन मैंने कुछ प्रबुद्ध वर्गों द्वारा जाहिर चिंता पर गौर किया। मैंने व्यक्तिगत तौर पर देखा कि मसौदे की कुछ बातों से बेवजह संदेह पैदा हो रहा है।
प्रसाद ने कहा-इसलिए मैंने इलेक्ट्रानिक्स एवं सूÞचना प्रौद्योगिकी विभाग को मसौदा वापस लेने और इस पर उचित तरीके से विचार कर फिर से इसे सार्वजनिक करने के लिए पत्र लिखा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जो एन्क्रिप्शन नीति बनाई जाएगी उसके दायरे में उपयोग करने वाले आम आदमी नहीं आएंगे। जो नया मसौदा जारी किया जाएगा उसमें यह स्पष्ट होगा कि कौन सी सेवाएं और उपयोग करने वाले इसके दायरे में आएंगे या किन्हें छूट मिलेगी।
इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वेबसाइट पर सोमवार शाम जारी मसौदे का अर्थ था कि भारत में व्यक्तिगत ई-मेल, संदेश या यहां तक कि आंकड़े सहित कंप्यूटर सर्वर में जमा कूटलेखन सहित हर तरह की सूचनाएं सरकार की पहुंच में होंगी।
मूल मसौदे के मुताबिक नई एन्क्रिप्शन नीति में प्रस्ताव किया गया है कि उपयोग करने वाला जो भी संदेश भेजता है चाहे वह वाट्सएप के जरिए हो या एसएमएस, ई-मेल या किसी अन्य सेवा के जरिए- इसे 90 दिन तक मूल रूप में रखना होगा और सुरक्षा एजंसियों के मांगने पर इसे उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा।
उधर, इंटरनेट पर इस पहल की तीखी आलोचना हुई और कइयों ने आशंका जाहिर की कि कानून-व्यवस्था से जुड़ी एजंसियों की आसानी से एन्क्रिप्ट की गई सूचनाओं तक पहुंच से सुरक्षा और निजता के साथ समझौता हो सकता है। इस फैसले के बचाव में प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने सोशल मीडिया सक्रियता को बढ़ावा दिया है।
अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता के अधिकार का हम पूरा सम्मान करते हैं। साथ ही हमें यह भी स्वीकार करने की जरूरत है कि लोगों, कंपनियों, सरकार और कारोबारियों के बीच सायबर क्षेत्र में आदान-प्रदान काफी तेजी से बढ़ रहा है। तो भी एन्क्रिप्शन नीति की जरूरत है और यह उन पर लागू होगी जो विभिन्न वजहों से संदेशों की एन्क्रिप्टिंग में शामिल हैं।