रुपये ने अभी संभलना शुरू ही किया था कि मुद्रा-विनिमय का अनुमान लगाने वाली एक वैश्विक संस्था ने प्रतिकूल भविष्यवाणी कर दी है। ब्लूमबर्ग के सर्वे में आईएनजी बैंक के अर्थशास्त्री प्रकाश सकपाल ने कहा है कि, तेल की बढ़ती कीमतों और विधानसभा चुनावों से पहले फैली राजनैतिक अनिश्चितता से रुपये की साख और गिरेगी। सकपाल का अनुमान है कि साल के अंत तक एक अमेरिकी डॉलर 76.50 रुपये का हो सकता है। उन्होंने कहा कि तेल की बढ़ती कीमतें और रुपये में घनिष्ठ संबंध है, और इसी वजह से स्थितियां और बिगड़ेंगी। सकपाल के अनुसार, ”निवेशक मुद्रा के साथ राजनैतिक खतरे का प्रीमियम भी जोड़ना शुरू कर देंगे।”
2019 में आम चुनाव से पहले, अगले दो महीनों में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की बड़ी परीक्षा लेने वाले हैं। कई ओपिनियन पोल्स में मुख्य विपक्षी पार्टी, कांग्रेस को राजस्थान में जीत मिलने का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर के आसार हैं। सकपाल ने इससे पहले अनुमान लगाया था कि एक डॉलर के मुकाबले 75 रुपये की दर के साथ 2018 का अंत होगा। सकपाल ने कहा, ”यह (रुपये का गिरना) बड़ा खतरा है।”
भारतीय बॉन्ड्स और स्टॉक्स की बिकवाली से रुपये ने डॉलर के मुकाबले गिरावट के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। 11 अक्टूबर को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 74.4825 रुपये थी। 2018 में भारतीय मुद्रा में करीब 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। अगस्त के बाद, शुक्रवार (19 अक्टूबर) को पहली बार लगातार दो सप्ताह रुपये में मजबूती देखी गई जब इस समयावधि में 0.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
यह अनुमान ऐसे समय में आया है जब मोदी सरकार विदेश में रहने वाले भारतीयों को फॉरेन-एक्सचेंज बढ़ाने के लिए ललचा रही है ताकि रुपया मजबूत हो सके। इलेक्ट्रिॉनिक्स, मोबाइल कम्युनिकेशंस में इस्तेमाल होने वाले कई आइटम्स पर बेसिक कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई है। विशेषज्ञों ने इस बात पर हैरानी जताई है कि रुपये में गिरावट पर भारतीय रिजर्व बैंक उतना मुखर क्यों नहीं है।
इस माह की शुरुआत में RBI ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया, जबकि जून से इन दरों में लगातार दो बार बढोतरी की जा चुकी थी। इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देश अपनी मुद्रा के समर्थन में आक्रामक ढंग से सामने आए हैं। केंद्रीय बैंक ने लंबे समय से यही बात कही है कि वह मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप केवल गैरजरूरी अस्थिरता रोकने के लिए करता है, विनिमय दरों के किसी स्तर को निशाना बनाने के लिए नहीं।
इसी महीने RBI ने मौद्रिक नीति को ‘न्यूट्रल’ से ‘कैलिब्रेटेड टाइटनिंग’ करने की बात कही है। रुपये के कमजोर होने से भारत को कच्चे तेल की खरीद में भी नुकसान हो रहा है क्योंकि हमारा देश अपनी जरूरतों का 80 फीसदी तेल आयात करता है। सकपाल के अनुसार, बढ़ा आयात बिल मार्च, 2019 तक जीडीपी के ढाई प्रतिशत तक जा सकता है। यह वित्त वर्ष 2013 के बाद इस मद में होने वाला सबसे ज्यादा खर्च होगा। वित्त वर्ष 2018 में तेल आयात पर जीडीपी का 1.9 प्रतिशत खर्च हुआ था।