जम्मू-कश्मीर के मसले पर सऊदी अरब का साथ न मिलने पर टिप्पणियां करना पाकिस्तान को भारी पड़ गया है। सऊदी अरब ने पाकिस्तान को लोन देने और तेल की सप्लाई के करार को खत्म करने का फैसला लिया है। मिडल ईस्ट मॉनिटर की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान को सऊदी अरब से लिया गया 1 अरब डॉलर का लोन चुकाना होगा, जो नवंबर 2018 में जारी किए गए 6.2 बिलियन डॉलर के पैकेज का हिस्सा था। इस पैकेज के तहत 3 अरब डॉलर के कर्ज और 3.2 अरब डॉलर की ऑयल क्रेडिट फैसिलिटी का ऐलान किया गया था। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने हाल ही में सऊदी अरब को चेतावनी देते हुए कहा था कि उसे ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन की मीटिंग में कश्मीर के मुद्दे को उठाना होगा।
कुरैशी ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा था, ‘यदि आप इस मसले को नहीं उठा पाते हैं तो मैं पीएम इमरान खान से कहूंगा कि वे इस्लामिक देशों की मीटिंग बुलाएं, जो हमारे साथ खड़े होने को तैयार हैं और कश्मीरियों के मसले पर हमारा समर्थन कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा था कि मैं यह कहना चाहता हूं कि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन की विदेश मंत्रियों की मीटिंग में कश्मीर का मुद्दा भी उठाया जाए, यह हमारी अपेक्षा है।
दरअसल बीते साल भारत की ओर से जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से ही पाकिस्तान इस बात पर अड़ा रहा है कि इस्लामिक देशों के संगठन की मीटिंग में यह मुद्दा उठना चाहिए। हालांकि सऊदी अरब इससे इनकार करता रहा है। दरअसल पाकिस्तान इस पूरे मामले को इस्लामिक मुद्दा बनाने की कोशिश में रहा है। इस मसले पर मुस्लिम देशों का समर्थन न हासिल पर बिफरे इमरान ने ट्वीट किया था, ‘हम कश्मीर के मसले पर इस्लामिक देशों की मीटिंग में भी साथ नहीं आ सकते। वजह यह है कि हमारी कोई आवाज नहीं है और हमारे भीतर पूरी तरह से विभाजन की स्थिति है।’
हालांकि पाकिस्तान की कोशिशें पूरी तरह से धराशायी हुई हैं। मालदीव ने भी पाकिस्तान की मांग को खारिज करते हुए कहा था कि भारत को लेकर इस्लामोफोबिया के जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे तथ्यात्मक तौर पर गलत हैं।

