आज मारुति सुजुकी (Maruti Suzuki) हर भारतीय का जाना-पहचाना नाम है। देश की सड़कों पर सबसे ज्यादा मारुति सुजुकी की कारें दिखाई देती हैं। कंपनी का मारुति 800 (Maruti 800) मॉडल अब तक देश में सबसे अधिक बिकने वाले मॉडलों में से एक है। बहुत कम लोग इस बात से अवगत होंगे कि मारुति और इसके सबसे लोकप्रिय मॉडल मारुति 800 का संजय गांधी से कनेक्शन (Maruti Sanjay Gandhi Connection) रहा है।
मामूली दर पर सैकड़ों एकड़ जमीन आवंटित हो जाने और कई साल का समय लगा देने के बाद भी संजय गांधी महज 21 मारुति कारें ही बना पाए थे। ये कारें सड़क पर दौड़ना दूर, कभी शोरूम का मुंह भी नहीं देख पाई थीं। बाद में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी नहीं होती तो मारुति की कहानी सही से शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई होती।
पूरी कहानी शुरू होती है 1950 के दशक में। सरकार ने तब आम लोगों की कार (People’s Car) की जरूरत महसूस की। इस बारे में विचार करने के लिए समितियां भी गठित हुईं। 1959 और 1960 में दो समितियों ने आम लोगों की कार की जरूरत पर जोर दिया।
Tata ने भी मांगा था ‘आम लोगों की कार’ बनाने का लाइसेंस
इसके बाद छोटी कार के लाइसेंस के लिए कंपनियों से आवेदन मंगवाने में सरकार को एक दशक लग गए। सरकार को कुल 18 कंपनियों से आवेदन मिले। इनमें टाटा की टेल्को भी शामिल थी, जो अब टाटा मोटर्स हो गई है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की कंपनी मारुति ने भी लाइसेंस के लिए आवेदन दिया था।
सरकार को मारुति का आवेदन सबसे बेहतर लगा। सरकार ने आम लोगों की कार बनाने के लिए संजय की कंपनी मारुति को गुड़गांव में 12,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 297 एकड़ जमीनें दी। यहां ऐसी छोटी कारें बनाने की योजना थी, जो आम लोगों के बजट की हो।
महज 21 कारें बना पाई थी संजय की कंपनी
शुरुआत में सोचा गया था कि आम लोगों की कार की कीमत 8,000 रुपये के पास रखी जाएगी। कई साल गुजरने के बाद अंतत: मई 1975 में आम लोगों की कार की लांचिंग की चर्चा होने लगी। लांचिंग की चर्चा के साथ इसकी एक्स-शोरूम कीमत निर्धारित की गई, जो पहले से तय कीमत की तुलना में दो गुने से अधिक 16,500 रुपये थी। इस तरह हरियाणा में इस गाड़ी की ऑन रोड कीमत करीब 21,000 रुपये बैठती।
लांचिंग की चर्चा करते हुए मई 1975 में संजय ने दावा किया था कि वह हर महीने 12-20 कारें बना सकते हैं। उन्होंने अगले चार साल में इसे बढ़ाकर 200 कारें प्रति दिन तक ले जाने का भी दावा किया था। हालांकि 31 मार्च 1976 तक संजय की कंपनी महज 21 मारुति कारें बना पाई थी।
Emergency में भी उठा रहे थे 4000 की सैलरी
आपको मालूम होगा ही कि इंदिरा गांधी ने जून 1975 में देश में इमरजेंसी लगा दिया था। इमरजेंसी लगते ही संजय राजनीति में कूद गए थे। हालांकि इसके बाद भी वह मारुति के एमडी बने हुए थे और इमरजेंसी में भी 4,000 रुपये की सैलरी हर महीने उठा रहे थे।
कोर्ट ने बंद करा दी थी संजय की कंपनी
इमरजेंसी के बाद 1977 में जब देश में आम चुनाव हुए, इंदिरा गांधी की पार्टी हार गई। मारुति का मामला अदालत तक पहुंच गया। 1978 में एक अदालत ने मारुति को बंद करने का आदेश दे दिया। संजय की मारुति और उसकी आम लोगों की कार की कहानी पर इस फैसले के साथ ही बड़ा विराम लग गया।
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Indira Gandhi की वापसी से हुआ मारुति 800 का जन्म
1980 में हुए अगले आम चुनाव में इंदिरा गांधी पुन: सत्ता में लौटी नहीं होतीं, तो मारुति बीते जमाने की बात बन गई होती। जून 1980 में संजय गांधी की एक हवाई दुर्घटना में मौत होने के बाद केंद्र सरकार ने मारुति कंपनी का अधिग्रहण कर लिया। इसके बाद जापान की कंपनी सुजुकी के साथ मिलकर छोटी कार पर काम शुरू किया गया। अंतत: 1983 में पहली मारुति 800 कार शोरूम पहुंच पाई।
बाद में देश की सड़कों पर छा जाने वाले इस मारुति 800 और संजय के बनाए मॉडल को देखें, तो इन दोनों में कोई समानता नहीं थी। सिवाय इसके कि नाम में मारुति जुड़ा हुआ था और बैज पुराना था।
Hitler के बिना ‘आम लोगों की कार’ की कहानी अधूरी
आपको बता दें कि आम लोगों की कार में इससे पहले भी कई देश की सरकारें दिलचस्पी ले चुकी थीं। जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर के जिक्र के बिना आम लोगों की कार की कहानी अधूरी रह जाएगी। फॉक्सवैगन (Volkswagen) की शुरुआत में हिटलर की अहम भूमिका है। इसके नाम का अर्थ देखें तो फॉक्स (Volks) मतलब आम लोग और वैगन (Wagen) मतलब कार, अर्थात आम लोगों की कार हो जाता है। फॉक्सवैगन की बीटल (Beetle) को दुनिया की पहली छोटी कार माना जाता है।