कुछ समय से आभासी मुद्रा में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है। हाल में आभासी मुद्रा को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की ओर से बड़ा बयान आया। केंद्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर ने कहा है कि आरबीआइ चरणबद्ध तरीके से अपनी खुद की आभासी मुद्रा लाने की रणनीति पर काम कर रहा है। आरबीआइ पायलट आधार पर थोक और खुदरा क्षेत्रों में इसे पेश करने की प्रक्रिया में है। केंद्रीय बैंक सोच-विचार के स्तर से काफी आगे बढ़ चुका है। सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के कई केंद्रीय बैंक इस दिशा में काम कर रहे हैं। आरबीआइ के डिप्टी गवर्नर ने कहा कि उपभोक्ताओं को उन आभासी मुद्रा में अस्थिरता के भयावह स्तर से बचाने की जरूरत है, जिन्हें कोई सरकारी गारंटी प्राप्त नहीं है। कई देशों के केंद्रीय बैंक अपनी आभासी मुद्रा की संभावना तलाशने में लगे हैं। कुछ देशों ने विशिष्ट उद्देश्य के लिए लागू किया है। अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह आरबीआइ भी काफी समय से सीबीडीसी (सेंट्रल बैंक डिजिटल करंसी) के विभिन्न पहलुओं पर गौर कर रहा है।

वित्त मंत्रालय की एक उच्च स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति ने नीति और कानूनी ढांचे का परीक्षण किया है। उसने देश में सीबीडीसी को आभासी मुद्रा के रूप में पेश करने की सिफारिश की है। शंकर के मुताबिक, इसे थोक और खुदरा क्षेत्रों में पायलट आधार पर लागू किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए कानूनी बदलाव की जरूरत होगी। सिक्का अधिनियम, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में भी संशोधन की आवश्यकता होगी।

चीन ने अपने यहां भौतिक मुद्रा को लेकर पायलट परियोजना-वालेट शुरू कर दी है। ऐसा करने वाला चीन पहला देश नहीं है। बहामा ने छह माह पहले सैंड डॉलर शुरू कर दिया था। चीन में दो करोड़ 80 लाख लोग आभासी आरएमबी का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने 39 हजार करोड़ रुपए के सात करोड़ लेन-देन किए हैं। विभिन्न देशों के 60 फीसद रिजर्व बैंक आभासी मुद्रा का परीक्षण कर रहे हैं। जानकारों की राय में, आभासी करंसी के कारण नोटों और सिक्कों की शक्ल में जारी भौतिक करंसी पूरी तरह गायब नहीं होगी। दुनिया में लगभग 3.71 लाख करोड़ रुपए का नकद धन लोगों की जेब, सेफ और बैंकों में है।

माना जा रहा है कि आभासी करंसी से सरकारों को घोटाले रोकने में मदद मिलेगी। दूसरे देशों में धन, संपत्ति का हस्तांतरण आसान हो जाएगा। संकट के समय यह ज्यादा उपयोगी होगी। फुदान यूनिवर्सिटी, शंघाई में फिनटेक रिसर्च सेंटर के निदेशक माइकेल सुंग ने अपने एक लेख में कहा है कि आभासी करंसी से विश्व की मौद्रिक प्रणाली में भारी बदलाव होगा। चीन ने 2019 में फेसबुक द्वारा आभासी करंसी-लिब्रा लाने की घोषणा के बाद तेजी से काम शुरू कर दिया। पिछले साल फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने अमेरिकी संसद की कमेटी में कहा कि लिब्रा ने एक तरह से सचेत किया है कि आभासी करंसी तेजी से आ रही है। रिजर्व बैंकों के सेंट्रल बैंक के रूप में काम करने वाली स्विस संस्था इंटरनेशनल सेटलमेंट बैंक के सर्वे में संकेत मिला है कि 86 फीसद रिजर्व बैंक भौतिक मुद्रा पर शोध कर रहे हैं। 60 फीसद रिजर्व बैंक परीक्षण टेस्टिंग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि तीन साल के अंदर दुनिया की 20 फीसद आबादी भौतिक मुद्रा से जुड़ जाएगी। विश्व में 2027 तक करीब 18 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति आभासी स्वरूप में होने की संभावना है।

क्या है आभासी मुद्रा

आभासी मुद्रा या डिजिटल करंसी का पूरा नाम है- सेंट्रल बैंक डिजिटल करंसी। जिस देश का केंद्रीय बैंक इसे जारी करता है, इसे उसी देश की सरकार की मान्यता हासिल होती है। भारत के मामले में आप इसे आभासी रुपया भी कह सकते हैं। यह दो तरह की होती हैं- खुदरा और थोक। खुदरा आभासी करंसी का इस्तेमाल आम लोग और कंपनियां करती हैं। वहीं थोक आभासी करंसी का इस्तेमाल वित्तीय संस्थाएं करती हैं।