पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने रविवार को सरकार के इस तर्क को खारिज किया कि जीएसटी दर को संविधान में नहीं शामिल किया जा सकता। उन्होंने कहा कि पहले का एक उदाहरण है जहां कर की दर को संविधान में शामिल किया गया है। सरकार के पास असाधारण हालात में नए कर लगाने का अधिकार है।
चिदंबरम ने वित्त मंत्री अरुण जेटली के इस आरोप को खारिज किया कि कांग्रेस किसी दूसरे कारणों से जीएसटी विधेयक के पारित होने में अड़ंगा लगा रही है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी सरकार के साथ सहयोग करने को तैयार है। चिदंबरम ने यहां पत्रकारों को बताया कि सरकार शुरुआत से कांग्रेस की तीन प्रमुख आपत्तियों पर रचनात्मक दृष्टि से बातचीत करती तो अब तक विधेयक पारित हो चुका होता।
जीएसटी पर मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन की रिपोर्ट में कांग्रेस की तीन में से दो मांगों का समर्थन किया गया है। इसमें कहा गया है कि वस्तुओं की अंतरराज्यीय आवाजाही पर एक फीसद अतिरिक्त शुल्क नहीं लगना चाहिए और जीएसटी की दर 18 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। जेटली के इस तर्क पर कि कर की दर को संविधान में शामिल नहीं किया जा सकता, उन्होंने कहा कि पहले भी ऐसा हो चुका है जब 2500 रुपए के पेशेवर कर की दर को संविधान में शामिल किया गया था।
उन्होंने कहा कि सरकार संविधान संशोधन विधेयक में एक सीमा का प्रावधान नहीं करती है तो इसका प्रावधान जीएसटी विधेयक में जरूर किया जाना चाहिए। दर का निर्धारण किए बिना कोई कर नहीं लगाया जा सकता। प्राकृतिक आपदा जैसी असाधारण परिस्थितियों में सरकार के पास एक नया कर लगाने का हमेशा से अधिकार रहा है। साथ ही आयकर व सीमा शुल्कों को भी जीएसटी में समाहित नहीं किया जा रहा है। विशेष हालात में धन जुटाने के लिए इन करों की दरें बढ़ाई जा सकती हैं।
कांग्रेस की मांग के कारणों का जिक्र करते हुए चिदंबरम ने कहा कि कर की दर पर सीमा का प्रावधान संविधान संशोधन विधेयक में करना होगा ताकि कोई भी सरकार मनमाने ढंग से दर न बढ़ा सके। उन्होंने कहा- हमारा अनुभव रहा है कि कांग्रेस की सरकार समेत सरकारों की थोड़ा-थोड़ा करके दरें बढ़ाने की प्रवृत्ति रही है। जीएसटी एक प्रतिगामी अप्रत्यक्ष कर है। यह कहने का कोई औचित्य नहीं बनता कि इसे संविधान संशोधन विधेयक में शामिल नहीं किया जा सकता।
चिदंबरम ने ट्विटर पर लिखा है- वित्त मंत्री अरुण जेटली से सहमत हूं। एक दोषपूर्ण जीएसटी से बेहतर है इसका देर से लागू होना। मौजूदा जीएसटी विधेयक दोषपूर्ण है। शनिवार को जेटली ने फिक्की की सालाना आम सभा में संकेत दिया था कि जीएसटी विधेयक का संसद के शीतकालीन सत्र में पारित होना संभव नहीं लगता और एक दोषपूर्ण विधेयक से बेहतर है कि विधेयक विलंब से आए।
कांग्रेस की मांग है कि जीएसटी दर पर सीमा लगे और इसे संविधान संशोधन विधेयक में शामिल किया जाए। वित्त मंत्री ने साफ कहा है कि कर की दर को संविधान का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। कांग्रेस एक राज्य से दूसरे राज्य के लिए भेजी जाने वाली वस्तुओं पर एक फीसद अतिरिक्त जीएसटी लगाने के प्रस्ताव को भी हटाने की मांग कर रही है। उस पर सरकार विचार करने को तैयार दिखती है।
चिदंबरम ने कहा कि सरकार कांग्रेस की तीन बड़ी आपत्तियों को मान ले तो विधेयक पारित हो सकता है। एक फीसद अतिरिक्त कर का प्रस्ताव यों भी खत्म हो चुका है। इसको हटा दिया जाए। कुशलतापूर्वक तैयार मसौदे से जीएसटी की दर पर सीमा का प्रावधान संविधान संशोधन विधेयक में किया जा सकता है। इस बारे में विपक्षी पार्टी से बात करें। विधेयक में शिकायत निपटाने के लिए एक व्यवस्था होनी चाहिए, कांग्रेस की इस मांग पर चिदंबरम ने कहा कि कोई भी राज्य स्वतंत्र विवाद निपटान व्यवस्था के खिलाफ नहीं है। इसे स्थापित करे।