इसे लोगों का शराब के प्रति मोहभंग कहा जाए या फिर आर्थिक मंदी के चलते मजबूरी। 2018 के मुकाबले सितंबर 2019 में शराब की खपत में भारी कमी आई है। पिछले 9 महीने में सितंबर माह के दौरान अंग्रेजी शराब की बिक्री में कमी देखी गई है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि इसके पीछे बाढ़, टैक्स में इजाफा और आर्थिक मंदी बड़ा कारण है। 2018 का वर्ष शराब की खपत के मामले में काफी ज्यादा रहा था। तब दारू के बाजार में 10 फीसदी का इजाफा देखा गया। व्हिस्की, ब्रांडी, रम, वोदका और जीन की बिक्री तब 6 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर रही।
‘इकोनॉमिक टाइम्स’ के मुताबिक स्थानीय स्तर पर बनी विदेशी दारू के प्रसार में सितंबर माह की तिमाही में 1.4 फीसदी का विस्तार हुआ। इसमें व्हिस्की और ब्रांड की डिमांड रही, लेकिन वोदका और जीन के सेग्मेंट में गिरावट देखी गई। हालांकि, एक साल पहले इसी तिमाही के दौरान बाजार में 12.9 फीसदी का ग्रोथ देखा गया था। भारत में निर्मित विदेशी दारू (IMDL) जिनमें रॉयल स्टैग, मैकडावेल्स, ब्लेंडर्स प्राइट और ऑफिसर चॉइस की खपत बाजार में 70 फीसदी तक है। ब्लैंडर्स प्राइड से जुड़ा ऑफिसर्स चॉइस ब्रांड के मार्केटिंग हेड ने ईटी को बताया कि ग्रामीण इलाकों में उपभोग काफी कम हो रहा है।
इसके अलावा राज्यों द्वारा शराब पर लगने वाले टैक्स और अन्य शुल्क की वजह से भी बिक्री घटी है। गौरतलब है कि अप्रैल और जून के दौरान इस सेग्मेंट में 2% का इजाफा दर्ज किया गया। जबकि, पिछले मार्च की तिमाही में इसमें ग्रोथ 2.8 फीसदी का था।
इसस पहले मीडिया रिपोर्ट में खबर आई थी कि अगस्त महीने में 110 करोड़ रुपये की कम शराब पी गई। तब बताया गया था कि दिल्ली में शराब की खपत में 25 फसीदी की गिरावट दर्ज की गई। वहीं, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी शराब की बिक्री में कमी की खबर सुर्खियों में रही।