प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों की सैलरी में होने वाली कटौती और नौकरियों के छिनने पर केंद्र सरकार की नजर है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने शुक्रवार को बताया कि लेबर मिनिस्ट्री को इस संबंध में आंकड़े जुटाने का आदेश दिया गया है। श्रम मंत्रालय से कहा गया है कि वह देश में लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों की सैलरी में होने वाली कटौती और छंटनी पर नजर रखे। यही नहीं मंजूर किए गए लोन्स के कर्जधारकों के खातों में ट्रांसफर न होने को लेकर भी वित्त मंत्रालय चिंतित है। मिनिस्ट्री के सूत्रों ने कहा कि सरकारी बैंकों की ओर से मंजूर किए गए लोन और जारी हुई रकम के बीच अंतर पाया गया है।
मंजूर किए गए लोन की राशि खातों में ट्रांसफर नहीं हो रही है। मंत्रालय की ओर से इस मसले को हल करने के प्रयास किए जा रहे हैं। बता दें कि 24 मार्च से पहला लॉकडाउन लागू होने से पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने निजी कंपनियों से अपील की थी कि लॉकडाउन के दौरान वे किसी को नौकरी से न निकालें और न ही सैलरी काटें। इसके बाद गृह मंत्रालय की ओर से इस संबंध में 29 मार्च को आदेश भी जारी किया गया था। हालांकि गृह मंत्रालय के इस फैसले के खिलाफ कई निजी संस्थानों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि यह संविधान का उल्लंघन है।
कंपनियों का कहना था कि संविधान में समान कार्य, समान वेतन की बात कही गई है। इसके अलावा नो वर्क, नो पे का प्रावधान है। ऐसे में हम जब लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों से काम ही नहीं ले रहे हैं तो फिर उन्हें पूरी सैलरी देने की बाध्यता नहीं लगाई जा सकती। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने होम मिनिस्ट्री के आदेश पर पिछले दिनों रोक लगा दी थी। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने पूछा था कि आखिर आप कितने दिन कंपनियों से बिना काम के ही सैलरी देते रहने की उम्मीद कर रहे हैं।