उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे कई राज्यों में श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर केंद्र सरकार ने कहा था कि यदि मजदूरों के हितों के विपरीत कुछ भी होगा तो उसे खारिज किया जाएगा। हालांकि अब केंद्र सरकार खुद ही लेबर कोड में राज्य सरकारों को यह ताकत देने जा रही है कि वे अपने अनुसार श्रम कानूनों में बदलाव कर सकें। इसके तहत राज्य सरकारें कर्मचारियों की छंटनी आदि के मामलों से जुड़े नियमों में बदलाव कर सकती हैं। इसके लिए उन्हें सदन से संशोधन कराने की भी जरूरत नहीं होगी। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने इस संबंध में श्रम मामलों की संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, जिसने छंटनी आदि के मसले पर अहम सुझाव दिए थे।

बता दें कि हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार कई राज्यों की सरकारों ने श्रम कानून से जुड़े अहम बदलाव किए थे। बता दें कि कोरोना काल में चीन से हटने वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को उत्तर प्रदेश में आने के लिए आकर्षित करने के मकसद से यूपी सरकार ने श्रम कानूनों में 1 हजार दिन के लिए ढील देने का फैसला लिया था। राज्य में काम के घंटों को 8 से 12 तक करने की छूट देने के अलावा नौकरी से हटाने और हायरिंग के नियमों को भी आसान करने का फैसला लिया गया था। यही नहीं ट्रेड यूनियन को मंजूरी देने या न देने का अधिकार भी उद्योगों को देने का फैसला लिया गया है।

यूपी के बाद करीब दर्जन भर राज्यों ने इस तरह के बदलावों का ऐलान किया था। इस पर केंद्र सरकार ने संसदीय समिति से चर्चा में कहा था कि किसी भी राज्य सरकार की ओर से लागू ऐसे श्रम कानूनों को खत्म किया जाएगा, जो श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के खिलाफ होंगे। यही नहीं केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने भी इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ऐसे किसी भी कानून को श्रम सुधार नहीं कहा जा सकता, जिसमें श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा न होती हो।