अमेजॉन और फ्यूचर ग्रुप की लड़ाई अब अगले मोड़ पर पहुंच गई है। किशोर बियानी की लीडरशिप वाले फ्यूचर ग्रुप की अर्जी के बाद अब जेफ बेजोस की कंपनी अमेजॉन ने भी दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है। अमेजॉन से पहले फ्यूचर ग्रुप ने भी दिल्ली हाई कोर्ट में प्रतिवाद दायर किया है और सिंगापुर आर्बिट्रेशन की ओर से रिलायंस के साथ डील रोकने के फैसले पर सुनवाई से पहले पक्ष लेने की मांग की है। बता दें कि इसी प्रतिवाद के जवाब में ही अमेजॉन ने भी कोर्ट में अर्जी में दी है। दरअसल सिंगापुर की आर्बिट्रेशन कोर्ट का फैसला सीधे तौर पर भारत में लागू नहीं होता है। ऐसे में अमेजॉन की ओर से देश के किसी हाई कोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डालकर उसे लागू करने की मांग की जा सकती है।
कानूनी जानकारों के मुताबिक अमेजॉन की याचिका से पहले ही फ्यूचर ग्रुप ने इसलिए प्रतिवाद दायर किया है ताकि मामले में सुनवाई से पहले उसका भी पक्ष लिया जा सके। कानूनी भाषा में प्रतिवाद यानि कैविएट का मतलब है कि यह एक प्रकार की सूचना है जो किसी एक पक्ष द्वारा कोर्ट को दी जाती है जिसमें यह कहा जाता है कि कोर्ट आवेदक को बिना नोटिस भेजे, दूसरे पक्ष को कोई भी रिलीफ न दे। शुद्धता परीक्षण के लिए कोर्ट पहले एक पक्ष को सुनेगी और उसके बाद ही फैसला सुनाएगी। यह एक तरह का का एहतियातन कदम माना जाता है। बता दें कि कैविएट की अवधि 90 दिन तक होती है।
जानकारों का मानना है कि अमेरिकी कंपनी अमेजॉन ने यह सुनिश्चित करने के लिए कैविएट दाखिल किया है कि कहीं भविष्य में उच्च न्यायालय की तरफ से आर्बिट्रेशन कोर्ट के फैसले पर रोक न लगा दी जाए। गौरतलब है कि सिंगापुर की आर्बिट्रेशन कोर्ट ने फ्यूचर ग्रुप की ओर से रिलायंस को रिटेल बिजनेस बेचने की डील पर रोक लगा दी थी। किशोर बियानी की लीडरशिप वाले फ्यूचर ग्रुप ने 24,713 करोड़ रुपये की डील में मुकेश अंबानी की कंपनी को अपना रिटेल बिजनेस बेच दिया था।
जानें, क्यों है डील पर अमेजॉन को ऐतराज: बता दें कि रिलायंस के साथ फ्यूचर ग्रुप की डील का अमेजॉन ने यह कहते हुए विरोध किया है कि 2019 में उसने ग्रुप में निवेश किया था और उस डील में जो करार तय हुए थे, उनका उल्लंघन किया गया है। अमेजॉन का कहना है कि उस डील में यह करार भी था कि हिस्सेदारी बेचने का फैसला यदि फ्यूचर ग्रुप लेता है तो फर्स्ट राइट टू रिफ्यूज का अधिकार अमेजॉन के पास होगा।