एक तरफ नरेंद्र मोदी की सरकार देश के लोगों को बुलेट ट्रेन के सपने दिखा रही है तो दूसरी तरफ रेलवे अपने उपभोक्ताओं के साथ सरासर व्यावसायिक बेईमानी कर रहा है। सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बनाए जाने से लोगों को रेलवे नेटवर्क में सुधार की उम्मीद जगी थी। पर रेलवे का रवैया ‘मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू’ वाला है। र्इंधन समायोजक घटक के मामले में रेलवे पिछले डेढ़ साल से यात्रियों और माल भेजने वालों के साथ सरासर नाइंसाफी कर रहा है।
र्इंधन समायोजक घटक की व्यवस्था रेलवे में फरवरी 2013 में लागू हुई थी। तब के रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने रेलवे बजट में इसकी घोषणा की थी। उन्होंने दुखड़ा रोया था कि र्इंधन की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी होने से रेलवे का घाटा बढ़ रहा है। दरअसल जनवरी 2013 के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ी थीं। चूंकि हाई-स्पीड डीजल का रेलवे में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है, लिहाजा अकेले वित्तीय वर्ष 2013-14 के र्इंधन बिल में बढ़ोतरी से रेलवे पर 51 अरब रुपए के बोझ का बंसल ने संसद में दावा किया था।
र्इंधन समायोजन घटक के बारे में मंत्री ने सांसदों को बताया था कि तेल की कीमतें बढ़ेंगी तो रेलवे उसी अनुपात में भाड़ा बढ़ा देगा। इसी तरह कीमतें घटेंगी तो भाड़ा घटा दिया जाएगा। नीमच के आरटीआइ कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने जब पाया कि कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट के बावजूद रेलवे ने एक बार भी र्इंधन समायोजन घटक के फार्मूले के हिसाब से भाड़े में कटौती नहीं की तो उन्होंने रेलवे बोर्ड से इस बारे में सूचना मांगी। रेलवे बोर्ड ने इस घटक से जुड़े उनके किसी भी सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया। अलबत्ता संदर्भ के लिए कुछ सूचनाएं जरूर मुहैया करा दीं।
बकौल चंद्रशेखर गौड़ जब से डीजल की कीमतों में कमी आई है, तभी से रेलवे ने र्इंधन समायोजन घटक के फार्मूले को भुला दिया है। जब कीमतें बढ़ रही थीं तो पहले अक्तूबर, 2013 और फिर जून, 2014 में इस घटक की आड़ में भाड़े बढ़ाए थे। राज्यसभा में चंदन मित्रा के एक सवाल के जवाब में खुद रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने 27 फरवरी, 2015 को इस तथ्य को स्वीकार किया। सिन्हा ने बताया कि अक्तूबर 2013 में डीजल की महंगाई के आधार पर यात्री किराए में दो फीसद की बढ़ोतरी की गई थी। जून 2014 में फिर इसी नाम पर भाड़ा 4.2 फीसद बढ़ाया गया था। अकेले 2013-14 में रेलवे ने इस घटक के बहाने यात्रियों से 1150 करोड़ रुपए की अतिरिक्त वसूली की थी।
र्इंधन समायोजन घटक को लागू करते वक्त सरकार ने वादा किया था कि वह डीजल की कीमतों के आधार पर रेल भाड़ों की साल में दो बार समीक्षा करेगी। जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है, डीजल की कीमतों में लगातार कटौती हुई है। लेकिन रेलवे ने एक बार भी र्इंधन समायोजन घटक के आधार पर रेल भाड़ों की इस दौरान समीक्षा करने की जरूरत नहीं समझी। जाहिर है कि समीक्षा होती तो रेल भाड़ों में कमी करनी पड़ती। जो रेलवे की बेईमानी और बदनीयती का साफ प्रमाण है। हैरानी की बात तो यह है कि रेलवे और सरकार दोनों में से किसी की तरफ से भी मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू के अपने इस रवैए के बारे में कोई सफाई नहीं दी गई है। रेलवे बोर्ड के अधिकारी भी इस बाबत सवालों पर कन्नी ही काट रहे हैं।