अमेरिका के ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव ऑफिस के अधिकारियों की एक टीम सोमवार (15 सितंबर 2025) रात नई दिल्ली पहुंची। कल यानी 16 सितंबर को नई दिल्ली में अमेरिका के मुख्य वार्ताकर ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में हुई दिनभर की बातचीत के बाद भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने कहा कि चर्चाएं ‘सकारात्मक’ रहीं और दोनों पक्षों ने ‘पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते के शीघ्र निष्कर्ष के लिए प्रयास तेज करने’ का फैसला लिया है। यह बातचीत उस दौर के बाद आगे बढ़ने के संकेत मानी जा रही है जब अमेरिका ने भारत पर 27 अगस्त से 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिए थे।

यह कदम भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने के कारण उठाया गया था जिसके चलते अमेरिका ने व्यापार वार्ता ‘रोक’ दी थी। फिलहाल भारत पर ट्रंप ने कुल 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। ट्रेड डील पर दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जन्मदिन पर शुभकामनाएं दी हैं। कुछ दिनों पहले वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि दोनों देशों के बीच नवंबर 2025 तक ट्रेड डील का पहला चरण फाइनल हो जाएगा। इन सभी चीजों के बीच सवाल यह है कि क्या ट्रेड डील होने के बाद भारत पर लगा 50 प्रतिशत टैरिफ खत्म किया जाएगा? सवाल यह भी है कि व्यापार डील होने के बाद भारतीय सामानों पर कितना टैक्स लगेगा?

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जनसत्ता ने इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए GTRI (Global Trade Research Initiative) के फाउंडर और पूर्व इंडियन ट्रेड सर्विस ऑफिसर अजय श्रीवास्तव से बातचीत की…

सवाल: क्या भारत-अमेरिका ट्रेड डील के तहत टैरिफ (import duties) पर राहत मिलेगी?
जवाब: निश्चित तौर पर दोनों देशों के बीच डील इसीलिए हो रही है ताकि टैरिफ 50 प्रतिशत से घटकर 10-15 प्रतिशत या शायद और कम हो जाए।

सवाल: भारत और अमेरिका की डिजिटल ट्रेड व IPR (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स) पर बातचीत किस दिशा में जा रही है?
जवाब: दुनिया के सबसे बड़े डेटा जेनरेटर देश चीन और भारत हैं। भारत अमेरिका के लिए सबसे बड़ा डेटा सप्लायर है, उनका जितना भी डिवेलपमेंट है जैसे कि सॉफ्टवेयर और आर्टिफिशियल, वो सब इंडिया से है और काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए वो चाहते हैं कि भारत डेटा फ्लो पर कभी भी कोई प्रतिबंध, टैक्स ना लगाए। उनकी सबसे बड़ी उम्मीद है कि भारत ‘फ्री फ्लो ऑफ डेटा’ रखे। आरबीआई का नियम है कि फाइनेंस डेटा देश के सर्वर में ही रखा जाए, लेकिन अमेरिका ऐसा नहीं चाहता। इसलिए भारत को अपने हित में देखना चाहिए और दोनों पक्षों की सहमति से इसका एक हल देखना पड़ेगा। ‘फ्री फ्लो ऑफ डेटा’ से भारत का डिवेलपमेंट नहीं हो सकेगा।

सवाल: क्या यह डील भारत के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियानों को सपोर्ट करेगी या टकराव पैदा करेगी?
जवाब: भारत-यूएसए ट्रेड डील से ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ पर कोई असर नहीं पड़ेगा। असर होगा तो सिर्फ पॉजिटिव ही होगा क्योंकि यूएस इंडस्ट्रियल पावर नहीं है। अमेरिका एग्रीकल्चर पावर है या इंडस्ट्री में बहुत हाई-टेक चीजें बनाता है- जैसे बोइंग। लेकिन सामान्य प्रोडक्ट्स जैसे टैक्सटाइल्स, लेदर, केमिकल्स में यूएस कहीं नहीं है।

इसलिए हमारे ‘मेक इन इंडिया’ को चाइना के इंपोर्ट से खतरा है, यूएस के साथ होने वाली डील से बिल्कुल भी नहीं।

सवाल: आम उपभोक्ता के लिए इस डील का क्या असर होगा?
जवाब: आम उपभोक्ता पर डील का कोई असर नहीं होगा। सरकार ने रेड लाइन (एग्रीकल्चर और डेयरी) तय की हैं और अभी तक मेंटेन की है और आगे भी रखेगी। अमेरिका इंडस्ट्रियल पावर है नहीं तो कोई असर आम ग्राहकों पर नहीं होगा।

अमेरिका से बहुत कम ऐसी चीजें आती हैं जो आम लोगों के काम की हैं, इसलिए भी कोई असर डील का नहीं होगा।

सवाल: क्या भारतीय प्रॉडक्ट्स को US में ज्यादा प्रतिस्पर्धी दामों पर एंट्री मिलेगी?
जवाब: सबसे पहली बात यह है कि ट्रंप ने सभी देशों के ऊपर टैरिफ लगाया है। लेकिन भारत और ब्राजील पर सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है। चीन पर 30 प्रतिशत टैरिफ ही है। और मान लीजिए कि अगर ट्रेड डील होने के बाद भारत पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगता है तो चीन समेत कई देशों पर लगा टैरिफ हमसे ज्यादा हो जाएगा। इसका मतलब है कि हमारे प्रोडक्ट्स यूएस में ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।

50 प्रतिशत टैरिफ लागू होने के बाद से भारत के एक्सपोर्ट पर असर पड़ा है और यह कम होना शुरू हो गया है। भारत के लिए यूएस बड़ा बाजार है और कुल 20 प्रतिशत एक्सपोर्ट यूएस जाता है, वो सब अभी खतरे में है। लेकिन डील होने और टैरिफ कम होने के बाद एक बार फिर सामान्य एक्सपोर्ट चालू हो जाएगा। और बाकी देशों की तुलना में भारत के प्रोडक्ट्स ज्यादा प्रतिस्पर्धी रहेंगे।

भारत-यूएस ट्रेड डील में Red Lines

भारत को कृषि और डेयरी पर सख्ती से कायम रहना होगा, जिन्हें वह व्यापार का विषय नहीं बल्कि 70 करोड़ से अधिक किसानों की आजीविका का मुद्दा मानता है। भारत की रणनीति है कि वह अधिकांश औद्योगिक वस्तुओं पर टैरिफ खत्म कर दे जिसमें अमेरिका के 95% से अधिक निर्यात शामिल होंगे। लेकिन राजनीतिक रूप से संवेदनशील सेक्टर्स की रक्षा करता रहे।

दोनों देशों के बीच व्यापारिक बातचीत में भारत के पेटेंट कानूनों में ढील, डेटा फ्लो की स्वतंत्रता, अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनियों को प्लेटफॉर्म मॉडल पर उत्पाद बेचने की अनुमति और भारतीय सरकारी टेंडर्स तक गहरी पहुंच जैसे मुद्दे भी शामिल हो सकते हैं।

सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि भारत अपनी रेगुलेटरी स्वायत्तता और आर्थिक संप्रभुता से समझौता किए बिना कितनी रियायत देता है।

भारत-अमेरिका ट्रेड से जुड़ी बड़ी बातें

निर्यात में लगातार गिरावट

मई 2025 से भारत का अमेरिकी निर्यात हर महीने घटा है। अगस्त में सबसे बड़ी गिरावट: $6.7 बिलियन (जुलाई से 16.3% कम)।

टैरिफ का असर

अप्रैल में 10% टैरिफ था। 7 अगस्त से 25% लागू हुआ और 27 अगस्त से बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया। सितम्बर में पूरी तरह 50% टैरिफ लागू होने से और गिरावट की आशंका।

कौन से सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित?

श्रम-प्रधान उद्योग: टेक्सटाइल/अपैरल, जेम्स एंड ज्वेलरी, लेदर, झींगा (shrimp), कालीन।

अमेरिका इनका 30–60% से अधिक आयात करता है।

अनुमान है कि FY 2026 तक भारत को $30–35 बिलियन का नुकसान हो सकता है। करीब 1/3 भारतीय निर्यात (जैसे फ़ार्मा, स्मार्टफोन) टैरिफ-फ्री हैं। लेकिन टैरिफ-हिट सेक्टर्स पर असर कहीं गहरा है।

क्या हैं इंडस्ट्री की मांगें?

ब्याज दर सब्सिडी (Interest Equalization Scheme)।

ड्यूटी रिमिशन की तेज प्रोसेसिंग। लिक्विडिटी सपोर्ट ताकि फैक्ट्रियां बंद न हों।

सरकार का रुख क्या है?

घरेलू खपत बढ़ाने के लिए GST में कटौती की गई है। लेकिन एक्सपोर्ट-फोकस्ड राहत पैकेज अभी तक नहीं आया।