अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय आयातों पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले से पहले भारत ने पिछले एक साल में अमेरिकी ट्रेजरी बिलों में अपने निवेश को कम कर दिया था। यह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की विदेशी मुद्रा भंडार रणनीति में एक सतर्क बदलाव का संकेत था। यह ट्रेंड आगे चलकर और भी स्पष्ट हो सकता है।
भारत धीरे-धीरे कम कर रहा है अमेरिकी ट्रेजरी बिल की खरीद
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर 2024 में अमेरिकी प्रतिभूतियों में भारत की होल्डिंग 247.2 अरब डॉलर थी, जो दिसंबर 2024 तक धीरे-धीरे घटकर लगभग 219.1 अरब डॉलर रह गई। ट्रेजरी बिलों में 10वां सबसे बड़ा निवेशक भारत, जून 2025 तक अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिभूतियों में लगभग 227 अरब डॉलर रखता था, जबकि जून 2024 में यह 242 अरब डॉलर था। पिछले साल सितंबर से लगभग 20 अरब डॉलर की गिरावट कई महीनों में हुई एक मापी गई कमी को दर्शाती है।
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एक्सपर्ट्स का क्या है कहना?
ट्रंप द्वारा भारतीय आयातों पर भारी टैरिफ लगाने के साथ, एक अहम सवाल उठता है कि क्या वाशिंगटन अमेरिकी प्रतिभूतियों में भारत के विशाल निवेश को लक्षित करते हुए और कदम उठा सकता है? बाजार सूत्रों के अनुसार, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस की अपने विदेशी मुद्रा भंडार तक पहुंच को रोकने के लिए तेजी से कदम उठाए।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिका असाधारण मामलों में ट्रेजरी प्रतिभूतियों तक पहुंच को रोकने या प्रतिबंधित करने की क्षमता रखता है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, वाशिंगटन और उसके सहयोगियों ने रूस के विदेशों में रखे अपने विदेशी मुद्रा भंडार के एक बड़े हिस्से तक पहुंच को अवरुद्ध कर दिया, जिसमें डॉलर और यूरो मूल्यवर्ग की संपत्तियां भी शामिल थीं।
इस घटना से साफ हो गया कि अगर हालात बिगड़ जाएं, तो अमेरिका अपनी वित्तीय प्रणाली के जरिए किसी भी देश की ट्रेजरी होल्डिंग्स (यानी सरकारी बॉन्ड में लगे पैसे) तक पहुंच रोक सकता है। ऐसा काफी कम होता है, लेकिन यह संभव है।
RBI के आंकड़ों से दिखता है कि थोड़ी गिरावट आई है। सितंबर 2024 में भारत की ग्लोबल सिक्योरिटीज और ट्रेजरी बिल्स में कुल होल्डिंग 515.24 अरब डॉलर थी, जो मार्च 2025 में घटकर 485.35 अरब डॉलर रह गई। इसकी वजह से कुल विदेशी मुद्रा भंडार भी घटकर 567.55 अरब डॉलर हो गया। अगस्त 2025 तक के नए आंकड़े अभी आरबीआई ने जारी नहीं किए हैं।
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गोल्ड रिजर्व
इसी समय, आरबीआई ने अपने गोल्ड रिजर्व को अर्जेस्ट किया है। रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि विदेशों में रखा सोना मार्च 2025 में घटकर 348.62 टन रह गया, जबकि एक साल पहले यह 387.26 टन था। घरेलू स्तर पर, आरबीआई के पास मार्च 2025 में 511.99 टन सोना था, जो मार्च 2024 के 408.10 टन से काफी अधिक है। 29 अगस्त को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 3.51 अरब डॉलर बढ़कर 694.23 अरब डॉलर हो गया।
केंद्रीय बैंक और सॉवरेन वेल्थ फंड अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिभूतियों में उल्लेखनीय निवेश करते हैं और इन्हें दुनिया की सबसे सुरक्षित और सबसे अधिक तरल संपत्तियों में से एक मानते हैं। अमेरिकी सरकार द्वारा समर्थित, ट्रेजरी प्रतिभूतियां ग्लोबल स्तर पर सबसे बड़े और सबसे सक्रिय बॉन्ड मार्केट का हिस्सा हैं।
अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिभूतियों में प्रमुख निवेशक
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के TIC आंकड़ों के अनुसार, जापान 1,147 अरब डॉलर के साथ अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिभूतियों में सबसे बड़ा निवेशक है। उसके बाद ब्रिटेन 858.1 अरब डॉलर और चीन 756.4 अरब डॉलर है। अमेरिकी 10-वर्षीय ट्रेजरी नोट पर प्रतिफल लगभग 4.10% पर स्थिर बना हुआ है, जिसमें हाल ही में आई गिरावट रुकी है क्योंकि बाजार आगामी महंगाई रिपोर्टों का इंतजार कर रहे हैं।
चीन (जिसके पास लगभग 1.3 ट्रिलियन डॉलर की अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिभूतियां थी) ने पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे अपनी होल्डिंग घटाकर 756 अरब डॉलर के स्तर पर ला दी है।
आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को तीन बातों (सुरक्षा, तरलता (Liquidity), और रिटर्न) पर ध्यान देकर मैनेज करता है। सबसे ज्यादा निवेश RBI अमेरिकी ट्रेजरी बिल और सरकारी बॉन्ड्स में करता है, क्योंकि ये बहुत सुरक्षित माने जाते हैं और इन्हें बड़ी मात्रा में खरीदा-बेचा जा सकता है बिना दाम पर अधिक असर डाले।
हालांकि, अमेरिका सबसे बड़ा निवेश गंतव्य है, लेकिन RBI जापान, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों के सरकारी बॉन्ड भी खरीदता है। इसके अलावा, कुछ पैसा वर्ल्ड बैंक, IMF और एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के बॉन्ड्स में भी लगाया जाता है।
RBI के भंडार का हिस्सा सेंट्रल और Bank for International Settlements में जमा और सोने में भी रहता है। इससे भारत का रिजर्व केवल एक जगह या एक तरह की संपत्ति पर निर्भर नहीं रहता।
जब 2025 में विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, तब RBI ने धीरे-धीरे अमेरिकी ट्रेजरी बिल की होल्डिंग कम की और सोने का हिस्सा थोड़ा बढ़ाया। इसका उद्देश्य रिस्क कम करना, निवेश फैलाना और देश की वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित रखना है।