कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में कमजोर प्रदर्शन के चलते वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर (जीडीपी) धीमी पड़कर पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत पर पहुंच गई। इससे पहले, वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत थी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने इस बाबत कहा है कि वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर घटकर 6.8 प्रतिशत रही। जीडीपी वृद्धि की यह दर 2014-15 के बाद सबसे धीमी है। वित्त वर्ष 2013-14 में जीडीपी वृद्धि की रफ्तार 6.4 फीसदी रही थी। चौथी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर चीन की आर्थिक वृद्धि की गति 6.4 प्रतिशत से कम रही।

‘आर्थिक वृद्धि में नरमी अस्थाई, आगे तेज होगी वृद्धि दर’: आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा है कि मार्च 2019 को समाप्त वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में देश की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट अस्थायी कारकों की वजह से आई है और आने वाले समय में वृद्धि दर एक बार फिर तेज होगी। शुक्रवार को उन्होंने पत्रकारों को बताया, ‘‘वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में नरमी एनबीसीफसी क्षेत्र में दबाव के कारण खपत वित्त पोषण के प्रभावित होने जैसे अस्थायी कारकों का नतीजा है। चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में भी आर्थिक वृद्धि दर अपेक्षाकृत धीमी रहेगी और दूसरी तिमाही से इसमें तेजी आएगी।’’

इसी बीच, लेबर सर्वे से जुड़े आंकड़े भी सामने आए। वित्त वर्ष 2017-18 के डेटा के मुताबिक, देश में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी रही। देखिए, पूरी टेबलः

बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर अप्रैल में धीमी पड़कर 2.6% रही: आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर अप्रैल में धीमी पड़कर 2.6 प्रतिशत रह गयी। कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस और उर्वरक उत्पादन में गिरावट से बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर में कमी आयी है। इससे पहले, अप्रैल 2018 के दौरान आठ बुनियादी उद्योगों…कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली…की वृद्धि दर 4.7 प्रतिशत रही थी।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कोयला में अप्रैल 2019 में 2.8 प्रतिशत की स्थिर वृद्धि दर्ज की गई। बिजली तथा रिफाइनरी उत्पादों के उत्पादन में क्रमश: 5.8 प्रतिशत तथा 4.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। आलोच्य महीने में कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस और उर्वरक क्षेत्रों की वृद्धि में गिरावट दर्ज की गयी। बुनियादी क्षेत्र की वृद्धि का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) पर भी असर पड़ता है। इसका कारण कुल औद्योगिक उत्पादन में इस खंड की हिस्सेदारी करीब 41 प्रतिशत होना है। (भाषा इनपुट्स के साथ)