दक्षिण एशियाई देशों के लिए IMF के हालिया प्रति व्यक्ति जीडीपी के आंकड़ो से पता चलता है कि बांग्लादेश सोशल और ह्यूमन डेवलपमेंट इंडिकेटर्स पर भारत और पाकिस्तान जैसे दोनों पड़ोसी देशों की तुलना में बेहतर परफॉर्म कर रहा है। यही नहीं आर्थिक मोर्चे पर भी इस साल मार्च से ही वह इन दोनों देशों से आगे है। पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ बांग्लादेश के वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ अशीकुर रहमान का कहना है कि साल 2013 में अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज ने अपनी पुस्तक ‘एन अनसेंडेड ग्लोरीः इंडिया एंड इट्स कंट्राडिक्शंस’ में बांग्लादेश को अपने पड़ोसी देशों के मुकाबले शिशु मृत्यु दर, बाल टीकाकरण, महिला साक्षरता व स्वच्छता में बेहतर बताया था।
डॉ. रहमान का कहना है कि ‘2018 तक बांग्लादेश में जीवन प्रत्याशा 72 साल हो गई है, जो कि 1971 में 46.5 साल थी। यह भारत की तुलना में दो साल अधिक है। बांग्लादेश भारत से इकॉनमिक डाइमेंशन में प्रति व्यक्ति आय में पिछड़ गया। 2015 में भारत की तुलना में यह लगभग 25% कम था। अगर आईएमएफ के नवीनतम आंकडे सही हैं तो यह अंतर भी गायब हो जाता है और 2025 तक बांग्लादेश और भारत के एक ही स्तर पर होने की उम्मीद है।’ हालांकि डॉ. अशीकुर का यह भी कहना है कि मौजूदा आर्थिक ग्रोथ के अनुसार यह तुलना करना ठीक नहीं है, जिसमें भारत की माइनस 10 फीसदी से भी ज्यादा नीचे जाने की संभावना है, जबकि बांग्लादेश की ग्रोथ 3.8 पर्सेंट रह सकती है।
बकौल डॉ. अशीकुर रहमान बांग्लादेश की आर्थिक वृद्धि पिछले चार दशकों में स्थिर रही है। स्वतंत्रता के बाद अशांति, अकाल और प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद 1990 के दशक के बाद से संपूर्ण प्रगति अच्छी रही है। डॉ. रहमान बताते हैं कि ‘बांग्लादेश की औसत जीडीपी पिछले तीन दशकों में दुनिया की औसत जीडीपी वृद्धि से अधिक रही है, यह 2010 के बाद से दक्षिण एशिया की औसत वृद्धि दर से अधिक रहा है। 1980 के बाद से प्रत्येक दशक में बांग्लादेश की औसत आर्थिक वृद्धि लगातार बढ़ी है। 2018 में बांग्लादेश दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में उभरा है।
वे आगे बताते हैं कि बांग्लादेश की जीडीपी में कृषि के योगदान में लगातार गिरावट आई है, जबकि विनिर्माण और सेवाओं में वृद्धि हुई है। 1980 में कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग एक तिहाई हिस्सा था। 2018 में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 15 प्रतिशत से कम हो गया था और उद्योग का अब एक तिहाई से अधिक का योगदान है, जबकि 1980 से विनिर्माण क्षेत्र का जीडीपी में योगदान दोगुना हो गया है।