अमरीकी कार कंपनी फोर्ड ने भारत से अपना बोरिया बिस्‍तर समेटने की तैयारी शुरू कर दी है। एक साल में कंपनी का यह पूरा प्रोसेस पूरा हो जाएगा। कंपनी भारत में अपने बिजनेस को सफलता पूवर्क चलाने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है। ताज्‍जुब की बात तो ये है कि कभी इसी कंपनी के मालिक ने रतन टाटा को कहा था कि वो कार बिजनेस के बारे में कुछ नहीं जानते। फ‍िर क्‍या था समय ने एक बार फि‍र अपना असर दिखाया और फोर्ड की लैंड रोवर और जगुआर जैसी कारों को टाटा मोटर्स ने अपनी कंपनी में शामिल कर लिया। जिनकी सेल में लगातार तेजी देखने को मिल रही है। आइए आपको भी बताते हैं कि फोर्ड और टाटा के बीच हुए इस दिचस्‍प क‍िस्‍से के बारे में।

कहते है ना कि ‘सफलता बदला लेने का सबसे अच्छा तरीका है’। यदि आपको निराशा को दूर करने और अपने लिए एक सफलता का रास्‍ता बनाने के लिए सबक की जरुरत है तो आप इसकी प्रेरणा रतन टाटा से ले सकते हैं, जिन्‍होंने टाटा मोटर्स को नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया। टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा, 1990 के दशक में टाटा इंडिका की शुरुआत के साथ भारत में ऑटोमोबाइल सेक्‍टर में क्रांति लाने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन पुराने जमाने में, जिसे अनिवार्य रूप से एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में देखा जाता था, वह जरुरत के हिसाब से रिजल्‍ट नहीं देता है। यह रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था, लेकिन बिक्री कम होने के कारण कार मार्केट में अपनी छाप छोड़ने में असफल रही। कम बिक्री की वजह से टाटा मोटर्स ने कार डिवीजन को बेचने का फैसला किया।

1999 में टाटा ग्रुप अपना नया कार व्यवसाय फोर्ड को बेचना चाहता था। रतन टाटा अपनी टीम के साथ डेट्रॉइट गए और फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड से मिले। तीन घंटे तक चली बैठक में रतन टाटा के साथ काफी अपमानजनक व्यवहार किया। बिल ने स्पष्ट रूप से उनसे कहा था कि वे कारों के बारे में कुछ नहीं जानते हैं और उन्हें कार डिवीजन शुरू नहीं करना चाहिए था। उन्होंने यहां तक कहा कि फोर्ड उनकी कार डिविजन खरीदकर टाटा पर एहसान कर रही है। मीटिंग के बाद रतन टाटा ने कार डिवीजन को ना बेचने का फैसला किया और वह भारत लौट आए। उन्होंने अपना सारा ध्यान टाटा मोटर्स पर लगाया और और इस डिविजन में और ज्‍यादा मेहनत की। वे कहते हैं, असफलता सबसे बड़ी प्रेरणा है, और इससे अधिक सही कुछ भी नहीं हो सकता।

9 साल समय फ‍िर से वहीं आकर खड़ा हो गया, लेकिन इस बार अपने कारोबार को बेचने के लिए फोर्ड के मालिक सबके सामने हाथ जोड़कर खड़े थे। यही वो समय था, जब रतन टाटा ने अपने अपमान का बदला बेहद शांत और विनम्र स्‍वभाव में लिया। 2008 की आर्थ‍िक मंदी की वजह से फोर्ड के प्रतिष्ठित ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर बिकने के लिए बाजार में थे। जिसे रतन टाटा ने 2.3 बिलियन डॉलर में खरीद लिया।

फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने रतन टाटा को धन्यवाद देते हुए कहा, ”आप जेएलआर खरीदकर हम पर बड़ा उपकार कर रहे हैं।” टाटा ने न केवल जेएलआर को खरीदा, बल्कि उन्होंने इसे अपने सबसे सफल उपक्रमों में से एक में बदल दिया। इस डील के कुछ ही सालों के बाद टाटा मोटर्स ने जेएलआर में कुछ बदलाव लिए और आज जगुआर और लैंड रोवर्स टाटा मोटर्स की सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों में से एक हैं।

प्‍लांट होंगे बंद
ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड मोटर ने गुरुवार को कहा कि वह “भारी नुकसान” के कारण भारत में कारों का निर्माण बंद कर देगी। फोर्ड इंडिया इस साल के अंत तक गुजरात में अपने साणंद प्‍लांट और अगले साल तक चेन्नई प्‍लांट में अपना ऑरपेशन बंद कर देगी। कंपनी के इंडिया यूनिट हेड अनुराग मेहरोत्रा ने कहा कि यह फैसला इसलिए लिया गया है क्‍योंकि लांग टर्म में प्रोफ‍िट कोई परमानेंट रास्‍ता नहीं दिखाई दे रहा है।

लगातार हो रहा था नुकसान
रॉयटर्स के अनुसार, इस कदम से 4,000 कर्मचारियों के प्रभावित होने की उम्मीद है। 2017 में जनरल मोटर्स और 2020 में हार्ले डेविडसन द्वारा अपना परिचालन बंद करने के बाद फोर्ड भारत से बाहर निकलने वाली तीसरी प्रमुख अमरीकी कार निर्माता कंपनी है। फोर्ड मोटर कंपनी के अध्यक्ष जिम फ़ार्ले के अनुसार भारत में इंवेस्‍टमेंट के बावजूद फोर्ड ने पिछले 10 वर्षों में 2 बिलियन डॉलर [1.47 लाख करोड़ रुपये] से अधिक का ऑपरेटिंग लॉस झेला है। वहीं डिमांड भी अनुमान के मुताबिक कमजोर देखने को मिली।