देश में खाद्य तेलों के दामों में पिछले कुछ सालों में काफी इजाफा हुआ है। सरकार की ओर से कदम उठाने के बाद अब खाद्य तेलों की कीमत फिर से थोक बाजार में नीचे आने लगी है, लेकिन बाजार में अभी भी खाद्य तेलों की एमआरपी में बिल्कुल भी कमी नहीं देखने को मिली है। कंपनियां लगातार उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई एमआरपी पर ही तेल बेच रही है।
तेल व्यापार के जानकारों का कहना है कि थोक बाजार में खाद्य तेलों की कीमत में पिछले कुछ हफ्तों में बड़ी कमी देखने को मिली है लेकिन खाद्य तेल कंपनियों द्वारा इसका लाभ अभी तक उपभोक्ताओं को नहीं दिया जा रहा है और एमआरपी के जरिए अधिक दाम वसूले जा रहे हैं। सरकार को ऐसी कंपनियों पर जल्द एक्शन लेना चाहिए।
हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, मौजूदा थोक कीमतों के आधार पर बाजार में सरसों का तेल 154 से 160 रुपए प्रति लीटर मिलना चाहिए, लेकिन तेल कंपनियां अधिक एमआरपी के साथ 190 रुपए प्रति लीटर तक इसकी बिक्री कर रही है। इसी तरह अन्य खाद्य तेलों पर जैसे मूंगफली के तेल पर 70 रुपए, सूरजमुखी के तेल पर 40 रुपए और बाकी अन्य खाद्य तेलों पर 30 से 40 रुपए अधिक लिए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि खाद्य तेलों की कीमतों को काबू में लाने के लिए सरकार लगातार कदम उठा रही है। जून 2021 के बाद से सरकार लगातार खाद्य तेलों पर लगने वाली आयात शुल्क में लगातार कमी कर रहा है। सरकार की ओर से पिछले साल अगस्त, सितंबर, दिसंबर और इस साल फरवरी और अप्रैल में आयात शुल्क में कमी की गई है। कच्चे पाम ऑयल पर आयात शुल्क को 24.75 से घटाकर शून्य कर दिया गया है। बता दें, भारत अपनी जरूरत का 80 फ़ीसदी से अधिक पाम ऑयल विदेशों से आयात करता है।
केंद्र सरकार ने मई 2022 में खाने के तेलों की कीमत को कम करने के लिए बड़ा फैसला लेते हुए 20 लाख टन कच्चे सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के आयात पर कस्टम ड्यूटी को घटाकर 31 मार्च, 2024 तक शून्य कर दिया है।