भारत समेत दुनिया ने कई बार मंदी का संकट झेला है, लेकिन कोरोना के चलते पैदा हुई स्थितियां पूरी तरह से अप्रत्याशित हैं। भारत को इससे पहले भी 4 बड़े आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा है। जानकारों का मानना है कि अब भारत 5वीं बार मंदी के दौर से गुजर रहा है। इससे पहले वित्त वर्ष 1958, 1966, 1973 और 1980 में बड़े आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि 1966 में तो भारत की बड़ी आबादी के सामने खाद्यान्न तक का संकट पैदा हो गया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नागरिकों से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने की भी अपील की थी। आइए जानते हैं, कब-कब भारत को झेलना पड़ा आर्थिक संकट…
कृषि संकट के चलते 1957 में बिगड़े थे हालात: भारत में 1957 में कृषि के हालात बेहद खराब थे। कमजोर मॉनसून के चलते खाद्यान्न वस्तुओं की कीमतों में बड़ा इजाफा हुआ था। सरकार को तब 40 लाख टन खाद्यान्न का आयात करना पड़ा था और 1957-58 में जीडीपी ग्रोथ माइनस 1.2 पर्सेंट तक गिर गई थी। इसकी वजह यह थी कि 1955 से 1957 तक इंपोर्ट बिल बढ़ने के चलते देश में बैलेंस ऑफ पेमेंट का संकट पैदा हो गया था। उस दौरान भारत का सोने का स्टॉक और विदेशी मुद्रा भंडार घटकर करीब आधा ही रह गया था।
जब दो सूखों के चलते खाद्यान्न का भी पैदा हुआ संकट: 1957 के बाद भारत को 1966 में बड़ा संकट झेलना पड़ा था। दरअसल 1962 में चीन से युद्ध और फिर 1965 में पाकिस्तान से वॉर के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के दौरान से गुजर रही थी। इसके बाद 1966 और 1967 में लगातार दो साल के सूखे के चलते यह संकट और गहरा हो गया। उस दौरान भारत को खाद्यान्न के लिए अमेरिकी से बड़े पैमाने पर मदद लेनी पड़ी थी। 1966 में खाद्यान्न का उत्पादन 20 पर्सेंट तक गिर गया था। भारत को 1965 में अपने खाद्यान्न उत्पादन के 10 फीसदी हिस्से यानी 70 लाख टन अनाज का आयात करना पड़ा था। 1966 में यह हालत और बदतर हो गए और देश को 1 करोड़ टन खाद्यान्न का आयात करना पड़ा था। इसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने की अपील की थी।
1973 का तेल संकट: भारत को पहली बार इस तरह का अप्रत्याशित संकट झेलना पड़ा था। पेट्रोलियम उत्पादक अरब देशों के संगठन ने ऐसे राष्ट्रों को तेल निर्यात करने पर रोक लगा दी थी, जो योम किप्पूर युद्ध में इजरायल के साथ थे। इसके चलते कुछ वक्त के लिए तेल की कीमतें 400 फीसदी तक बढ़ गई थीं। इससे भारत का तेल आयात का बिल दोगुने से ज्यादा हो गया था। तेल की कीमतें 3 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 12 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं।
ईरानी क्रांति के चलते भी पैदा हुआ था संकट: 1980 में एक बार फिर भारत को बाहरी कारणों के चलते बड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था। तब ईरानी क्रांति के चलते तेल का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। इसके चलते कीमतों में बड़ा इजाफा देखने को मिला था। इस दौर में एक बार फिर से भारत का ऑइल इंपोर्ट का बिल करीब दोगुना हो गया था। इसी दौर में भारत का एक्सपोर्ट भी 8 फीसदी तक गिर गया था, इसके चलते एक बार फिर से भारत के सामने पेमेंट का संकट पैदा हो गया था।