क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनी (सीआईसी) की एक रिपोर्ट में मंगलवार को कहा गया कि देश की कुल 40 करोड़ कामकाजी आबादी के करीब आधे लोग कर्जदार हैं, जिन्होंने कम से कम एक ऋण लिया है या उनके पास क्रेडिट कार्ड है। ट्रांसयूनियन सिबिल की रिपोर्ट के मुताबिक ऋण संस्थान तेजी से नए ग्राहकों के लिहाज से संतृप्ति स्तर के करीब पहुंच रहे हैं।

रिपोर्ट में आगे कहा गया कि एक अनुमान के मुताबिक जनवरी 2021 तक भारत की कुल कामकाजी आबादी 40.07 करोड़ थी, जबकि खुदरा ऋण बाजार में 20 करोड़ लोगों ने किसी न किसी रूप में कर्ज लिया है। गौरतलब है कि पिछले एक दशक में बैंकों ने खुदरा ऋण को प्राथमिकता दी, लेकिन महामारी के बाद इस खंड में वृद्धि को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। सीआईसी के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में 18-33 वर्ष की आयु के 40 करोड़ लोगों के बीच कर्ज बाजार की वृद्धि की संभावनाएं हैं और इस खंड में ऋण का प्रसार सिर्फ आठ प्रतिशत है।

बैंक आफ इंटरनेशनल सैटलमेंट्स (बीआईएस) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में 2020 के अंत में कुल बकाया बैंक कर्ज 1,52,000 करोड़ डॉलर पर जीडीपी के 56.075 प्रतिशत के बराबर रहा। लेकिन यह आंकड़ा एशिया के समकक्ष देशों के के बीच दूसरा सबसे कम स्तर है। उभरते बाजारों वाले देशों में बैंक कर्ज जीडीपी का 135.5 प्रतिशत और विकसित देशों में 88.7 प्रतिशत है।

कोरोना महामारी के प्रभाव से उबरने के लिये 2020 में सरकार की ओर से कर्ज- केन्द्रित प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा के बावजूद साल दर साल कर्ज ग्रोथ में मात्र 5.56 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई। पिछले 59 साल में यह सबसे कम वृद्धि रही। इससे पहले वित्त वर्ष 1961- 62 में यह 5.38 प्रतिशत रही थी। यहां तक कि इससे पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में भी कर्ज ग्रोथ 58 साल के निचले स्तर 6.14 प्रतिशत पर रही थी।

विश्लेषकों का मानना है कि बैंक कर्ज ग्रोथ आर्थिक वृद्धि का एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है। जीडीपी के मुकाबले 100 प्रतिशत अनुपात यदि रहता है तो इससे अर्थव्यवसथा में बिना किसी आशंका के कर्ज की मांग काफी अच्छी रहती है। बहरहाल देश का बेंक कर्ज अनुपात 56 प्रतिशत पर पांच साल का उच्चस्तर है जो कि 2015 में 64.8 प्रतिशत था।