केंद्रीय बजट 2022 (Budget 2022) से पहले देश का इकनॉमिक सर्वे (आर्थिक समीक्षा) पेश किया गया। सोमवार (31 जनवरी, 2022) को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे संसद में पेश किया। इसमें वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सरकार के बजट से पहले अर्थव्यवस्था के हालात का ब्यौरा दिया गया है।
सर्वे में वित्त वर्ष 2022-23 (अप्रैल 2022 से मार्च 2023) के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के आठ से 8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। दूसरी ओर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के अनुमान के मुताबिक, आर्थिक वृद्धि दर 9.2 प्रतिशत रह सकती है।
समीक्षा 2021-22 में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति के साथ ही वृद्धि में तेजी लाने के लिए किए जाने वाले सुधारों का ब्यौरा दिया गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी। आर्थिक समीक्षा भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए आपूर्ति-पक्ष के मुद्दों पर केंद्रित है।
इकनॉमिक सर्वे एक तरह से देश की अर्थव्यवस्था का सालाना रिपोर्ट कार्ड कहा जा सकता है, जो हर क्षेत्र के परफॉर्मेंस की जांच-पड़ताल करता है। साथ ही भविष्य की चाल को लेकर आकलन करने के साथ सुझाव देता है।
इकनॉमिक सर्वे के दो हिस्से होते हैं। पहले भाग में देश के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियां शामिल की जाती हैं, जबकि दूसरे में बीते हुए साल के विश्लेषण का जिक्र होता है।
यही नहीं, हर इकनॉमिक सर्वे की एक अलग थीम होती है। पिछले साल यानी 2021 का विषय ‘जीवन बचाना और आजीविका’ था। 2017-18 में आर्थिक सर्वेक्षण गुलाबी था, क्योंकि तब की थीम नारी सशक्तिकरण थी।
चूंकि, यह सर्वे बीते वित्तीय वर्ष में सभी क्षेत्रों मसलन औद्योगिक, कृषि, औद्योगिक उत्पादन, रोजगार, कीमतों, निर्यात आदि के विस्तृत सांख्यिकीय डेटा (Statistical Data) का विश्लेषण करते हुए भारत में आर्थिक विकास की समीक्षा करता है।
यह सर्वेक्षण इसके साथ ही अगले वित्तीय वर्ष के लिए देश की प्राथमिकताएं और किन क्षेत्रों पर अधिक जोर देने की जरूरत है, यह भी बताते हुए केंद्रीय बजट की बेहतर समझ देने में भी मदद करता है।
यह अहम दस्तावेज मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Adviser (CEA) के मार्गदर्शन में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा तैयार किया जाता है। इस साल सीईए की गैर-मौजूदगी में इसे प्रिंसिपल इकनॉमिक एडवाइजर और बाकी अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया।
भारत की आजादी के एक दशक से भी अधिक समय तक आर्थिक सर्वे बजट के साथ पेश होता था। पर साल 1964 में दोनों को अलग कर दिया गया था और आर्थिक सर्वे का अग्रिम रूप से अनावरण किया गया था।
यह प्रथा जारी है क्योंकि यह सर्वे बजट को एक संदर्भ मुहैया कराता है। वैसे, रोचक बात है कि सरकार के लिए यह सर्वे पेश करना जरूरी नहीं है और पहले खंड में प्रस्तुत सिफारिशें सरकार पर बाध्यकारी नहीं हैं।
