योगगुरु रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद अकसर किसी न किसी वजह से सुर्खियों में बनी रहती है। कोरोना काल में इस कंपनी की चर्चा कोरोनिल दवा को लेकर हो रही है। कोरोनिल को लेकर पतंजलि जो दावे करती है, उस पर कई तरह के सवाल खड़े किए जा चुके हैं। वहीं, पतंजलि के कई ऐसे भी मामले हैं, जिसमें कंपनी पर 75 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लग चुका है। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों पतंजलि पर ये जुर्माना लगा था।
क्या था मामलाः एक साल पहले यानी 2020 में बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद को जीएसटी दरों मे कटौती के बावजूद इसका फायदा ग्राहकों को नहीं पहुंचाने का दोषी पाया गया था। दरअसल, 2017 में केंद्र सरकार ने जीएसटी लागू किया था। इसके बाद कई उत्पादों पर जीएसटी दरें 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी कर दी गई थी। आरोप के मुताबिक पतंजलि ने कीमतें नहीं घटाई बल्कि वाशिंग पाउडर का बेसिक प्राइस भी बढ़ा दिया। इसके बाद से ही नेशनल एंटी प्रॉफिटिंग अथारिटी (एनएए) ने जुर्माना लगाया।
हालांकि, पतंजलि का कहना था कि जीएसटी लागू होने के बाद उसे नुकसान उठाना पड़ा था, क्योंकि रेट तो बढ़ाई गई थी लेकिन कीमतें नहीं बढ़ी थीं। इस तर्क को एनएए ने खारिज कर दिया। (ये पढ़ें—रामदेव की कंपनी से 13 निवेशकों की शिकायत)
नेशनल एंटी प्रॉफिटिंग अथारिटी का कहना था कि पतंजलि की तरफ से कीमतें नहीं बढ़ाना कारोबारी फैसला था और इसे टैक्स कटौती का फायदा ग्राहकों तक नहीं पहुचाने की वजह नहीं बताया जा सकता है।
बता दें कि योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद देश में हर्बल उत्पादों के क्षेत्र में कारोबार करती है। साबुन से लेकर टूथपेस्ट तक पतंजलि आयुर्वेद के ऐसे कई उत्पाद हैं, जिसकी चर्चा होती रहती है। (ये पढ़ें—जब रामदेव और अडानी के बीच हुई टक्कर)
कई कंपनियों पर लग चुका है जुर्मानाः हालांकि, पतंजलि आयुर्वेद इकलौती ऐसी कंपनी नहीं है जिस पर इस तरह मुनाफाखोरी रोधी प्रावधानों के तहत कार्रवाई की गई थी। बीते साल ही एचयूएल और मैगी नूडल्स बनाने वाली कंपनी नेस्ले पर भी यही आरोप लगे और उन पर जुर्माना लगाया गया। आपको बता दें कि वन नेशन, वन टैक्स जीएसटी को साल 2017 में लागू किया गया था। इसके तहत टैक्स स्लैब 5,12,18 और 28 फीसदी रखा गया है। अधिकतर गुड्स और सर्विसेज 5 और 12 फीसदी टैक्स स्लैब के तहत आते हैं।