कामकाज वाले दिनों में सुबह 9 बजे के आसपास करीब 200 दिहाड़ी मजदूरों को जमशेदपुर के इमली चौक पर इंतजार करते हुए देखा जा सकता है। ठेकेदार यहां आकर उन्हें एक दिन के काम के लिए ले जाते हैं। फिलहाल इन कामगारों की तादाद बेहद ज्यादा है जबकि पर्याप्त काम उपलब्ध ही नहीं है। यहां तीन महीने पहले हालात कुछ और थे। इमली चौक पर इतनी भीड़ होती ही नहीं थी।

जमशेदपुर से 30 किमी दूर सरायकेला और राजनगर जैसे इलाकों के रहने वाले मजदूर स्टील सिटी कहलाने वाले जमशेदपुर के ऑटोमोबाइल कलपुर्जे बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम करते थे। बीते कुछ महीनों से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में डिमांड बेहद घट गई है, जिसका सीधा असर इन फैक्ट्रियों पर पड़ा है। इन फैक्ट्रियों को अब कम कामगारों की जरूरत है। बता दें कि जमशेदपुर टाटा स्टील और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों का गृहनगर है, जो इस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में बड़ा योगदान करता है।

यहां फैक्ट्रियां ग्रामीण इलाकों के कामगारों को उद्योगों और निर्माण कार्य आदि में रोजगार उपलब्ध कराती हैं। बारिश आधारित कृषि पर निर्भर झारखंड में खेती भी इन लोगों को बेहतर विकल्प नहीं लगता। वहीं, मनरेगा के तहत 171 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी भी इन कामगारों को ज्यादा आकर्षित नहीं करती क्योंकि भुगतान में देरी और योजनाओं के लागू होने से जुड़ी समस्याएं भी शामिल हैं।

बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले राजू कुमार बेहतर रोजगार के मौके ढूंढते हुए जमशेदपुर आए थे। वह बीते दो साल से एक मेटल फोर्जिंग कंपनी में काम कर रहे थे। उन्हें 12 घंटे की शिफ्ट में काम करने के लिए 450 रुपये मिलते थे। वह बताते हैं, ‘अगर आज मुझे 250 रुपये प्रति दिन भी मिल जाएं तो मैं खुश हो जाऊं।’

राजनगर के रहने वाले बबलू प्रधान उन दर्जनों लोगों में शामिल हैं जो उस दिन काम पाने का इंतजार कर रहे थे, जब द संडे एक्सप्रेस ने उनसे मुलाकात की। उन्होंने बताया कि जिस ऑटो कलपुर्जे बनाने वाली कंपनी में अभी तक वह काम करते थे, वहां अब उनकी जरूरत नहीं है। इसी दिन बादल मरांडी दोपहर 1 बजे तक सड़क पर घूमते रहे लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिला।

सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग (MSME) के संगठन सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (SCCI) के प्रेसिडेंट अशोक भलोटिया ने बताया, ‘हमारे आकलन के मुताबिक, जमशेदपुर के सभी छोटी यूनिटों खासतौर पर ऑटो कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों में करीब 10 हजार लोग बिना रोजगार के हैं। अगर टाटा स्टील और टाटा मोटर्स प्रभावित होते हैं तो लेबर मार्केट पर भी बड़ा असर पड़ता है।’

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SCCI का आकलन है कि यहां MSME उद्योग को बीते पांच महीने में करीब 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। भलोटिया खुद एक ऐसी कंपनी चलाते हैं, जो ऑटोमोबाइल चेसिस के निर्माण से जुड़ी है। उनके मुताबिक, उन्हें भी बीते 5 महीनों में करोड़ों का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, ‘मैंने कुशल कामगारों को बनाए रखा लेकिन 200 मजदूरों को जाने के लिए कहना पड़ा।’

बता दें कि जमशेदपुर की टाटा मोटर्स हैवी वीइकल्स बनाती है और यहां करीब 10 हजार लोगों को रोजगार मिलता है। इनमें से आधे कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं। इंडस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक, कंपनी के प्रोडक्शन में बड़ी गिरावट आई है। पहले यहां करीब 10 से 12 हजार यूनिट का मासिक प्रोडक्शन था जो घटकर अब ढाई से 3 हजार यूनिट रह गया है। सूत्रों के मुताबिक, जुलाई के बाद कई बार फैक्ट्री बंद भी रही।

टाटा मोटर्स यूनियन के पूर्व जनरल सेक्रेटरी प्रकाश कुमार ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट वाले कामगारों को कोई पेमेंट नहीं मिलता अगर काम नहीं होता। वहीं, स्थायी कर्मचारियों को आधा भुगतान मिलता है। उनके मुताबिक, टाटा मोटर्स को कलपुर्जे उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है।

गाड़ियों के एक्सेल स्पिन्डल्स बनाने वाली कंपनी टीएमएफ के बाहर लिखा है कि मांग की कमी की वजह से कारखाना 7 से 18 अगस्त तक बंद रहेगा। यह भी बताया गया है कि कंपनी सैलरी भुगतान की कोशिश कर रही है, लेकिन कर्मचारी आने से पहले मैनेजमेंट को कॉल कर लें।

आदित्यपुर स्मॉल इंडस्ट्रीज असोसिएशन के प्रेसिडेंट इंदर अग्रवाल बताते हैं कि जमशेदपुर में ऑटो कलपुर्जे बनाने वाली 800 से ज्यादा कंपनियां पूरी तरह टाटा मोटर्स और टाटा स्टील पर निर्भर हैं। उनके मुताबिक, पहले वे तीन शिफ्ट में काम करते थे लेकिन अब एक शिफ्ट ही चलाई जा रही है। व्यापार भी दो तिहाई घट गया है। इसका असर टाटा स्टील पर भी पड़ा है जो इन कंपनियों को माल उपलब्ध कराती है।