लॉकडाउन के चलते एक तरह से ठप हुई देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को 20 लाख करोड़ रुपये के मेगा पैकेज का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि इस पैकेज में पिछले दिनों आरबीआई की ओर से अर्थव्यवस्था में डाली गई रकम का हिस्सा भी शामिल है। पीएम नरेंद्र मोदी और सरकार का मानना है कि बैंकों में आरबीआई की ओर से रकम डालकर ग्रोथ को गति दी जा सकती है। पिछले दिनों आरबीआई ने बैंकों को लोन देने और ग्रोथ में इजाफे के मकसद से बैंकों में करीब 8.04 लाख करोड़ रुपये की रकम डाली थी। हालांकि इसके बाद भी ग्रोथ का सवाल बना हुआ है क्योंकि आरबीआई बैंकों को तो रकम दे रहा है, लेकिन बैंक उस रकम को लोन के तौर पर बांटने को तैयार नहीं हैं।
आरबीआई में बैंकों ने जमा कराए 7 लाख करोड़ रुपये: आंकड़ों पर नजर डालें बैंकों ने आरबीआई के पास फरवरी के महीने में 39,983 करोड़ रुपये की रकम जमा कर रखी थी। लेकिन 16 अप्रैल को यह आंकड़ा तेजी से बढ़ते हुए 6,99,312 करोड़ रुपये हो गया। बैंकों की ओर से आरबीआई में जमा रकम पर रिवर्स रेपो रेट के तहत ब्याज मिलता है। इसका सीधा अर्थ है कि बैंकों के पास कैश तो है, लेकिन वे कर्ज के फंसने के डर से लोन देने को ही तैयार नहीं हैं। ऐसे में यदि बैंकों की ओर से कारोबारियों या फिर रिटेल ग्राहकों को लोन ही नहीं दिए जाएंगे तो फिर ग्रोथ को रफ्तार कैसे मिलेगी? आरबीआई की ओर से रकम जारी किए जाने के अलावा इस सवाल का जवाब भी तलाशे जाने की जरूरत है।
लोन देने से क्यों बच रहे हैं बैंक: दरअसल अनिश्चितता के चलते बैंक कर्ज से ब्याज कमाने की बजाय आरबीआई से रिवर्स रेपो रेट के तहत मिलने वाली रकम ही ज्यादा सेफ मान रहे हैं। इसके अलावा बैड लोन की चिंता के चलते भी बैंक कर्ज देने से बच रहे हैं। सितंबर, 2019 के आंकड़े के मुताबिक 12.7 फीसदी कर्ज बैड लोन था। बैड लोन उस रकम को माना जाता है, जिसकी रीपेमेंट पिछले 90 दिनों से बंद हो गई हो।
क्या चाहते हैं बैंक: ऐसे में अहम सवाल यही है कि यदि आरबीआई की ओर से बैंकों में डाले गए 8 लाख करोड़ रुपये की रकम में से लगभग 7 लाख करोड़ रुपये उसके ही खजाने में बैंकों ने लौटा दिए हैं तो फिर कैसे ग्रोथ होगी? दरअसल बैंक यह चाहते हैं कि उनकी ओर से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को दिए जाने वाले लोन की 100 फीसदी गारंटी सरकार ले। वहीं, सरकार यह तय नहीं कर पा रही है कि वह लोन पर कितनी गारंटी ले सकती है। पूरे मामले से जुड़े जानकार बताते हैं कि बैंकों को यह भी लग रहा है कि आर्थिक गतिविधियों के तेजी पकड़ने में अभी वक्त है, ऐसे में बिना मांग के ज्यादा लोन नहीं दिए जा सकते।
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