सरकारी क्षेत्र की विमानन कंपनी अब टाटा समूह की कंपनी टाटा संस की हो गई है। कर्ज में डूबी इस सरकारी विमानन कंपनी की सौ फीसद हिस्सेदारी 18 हजार करोड़ रुपए में खरीद ली। सोमवार को सरकार ने आशय पत्र जारी कर दिया। विनिवेश की प्रक्रिया साल 2021 के दिसंबर तक पूरी हो जाएगी। टाटा संस एअर इंडिया के 15,300 करोड़ रुपए के कर्ज का जिम्मा लेगा। दरअसल, प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के दौर से ही एअर इंडिया कंपनी ने नए विमान खरीदने बंद कर दिए थे। जानकारों की राय में, सरकार को हर हाल में इसे बेचना ही था और खरीदार ने जो मांग रखी उसे सरकार को मानना पड़ा है। इस कंपनी के विनिवेश में अहम मुद्दा एअर इंडिया के रणनीतिक महत्व को लेकर रहा है। यह कंपनी सरकार की तकनीकी सहयोगी की तरह थी। क्या आगे भी इस कंपनी का रणनीतिक महत्व बना रहेगा?
सौदे में क्या-क्या हासिल
घाटे के बावजूद एअर इंडिया के पास काफी परिसंपत्तियां हैं। लंदन के हीथ्रो एअरपोर्ट पर उसका अपना स्लाट है। 130 विमानों का बेड़ा और साथ में हजारों प्रशिक्षित पायलट और चालक दल के सदस्य हैं। टाटा समूह को इस सौदे के साथ ही देश के हवाई अड्डों पर 4400 घरेलू और 1800 अंतरराष्ट्रीय लैंडिंग और पार्किंग स्लाट और विदेशों में नौ सौ स्लाट मिलेंगे। पिछले साल मार्च में इसका मूल्यांकन छह अरब डालर का किया गया था। दिल्ली के वसंत विहार में एअर इंडिया कालोनी 30 एकड़ में है। इस परिसंपदा की कीमत ही 12 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की है। दिल्ली में मुख्यालय एअरलाइंस हाउस की करोड़ों में है।
आगे के आसार
भारत का विमानन क्षेत्र 20 फीसद की सालाना दर से बढ़ रहा है। जानकारों के मुताबिक, भारतीय उड्डयन बाजार की पूरी क्षमता का दोहन अभी तक नहीं हो पाया है। ऐसे में एअर इंडिया में टाटा समूह के लिए काफी संभावनाएं मानी जा रही हैं। सरकार पहले भी एअर इंडिया को बेचने की कई बार कोशिश कर चुकी थी, लेकिन खरीदार नहीं मिले थे। सरकार ने इस बार शर्तों में काफी बदलाव किए थे। जानकारों के मुताबिक, एअर इंडिया को फिर से पटरी पर लाने के लिए टाटा घराने को कम से कम पांच से सात साल का वक्त लगेगा। टाटा समूह की विमानन क्षेत्र की कंपनी विस्तारा में 51 फीसद (सिंगापुर एअरलाइंस की इसमें 49 फीसद हिस्सेदारी है) और एअर एशिया लिमिटेड में 84 फीसद हिस्सेदारी है।
शर्तों में क्या-क्या ढील
वर्ष 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन सरकार ने एअर इंडिया में 40 फीसद हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी। उस वक्त लुफ्तहांसा एअरलाइंस, ब्रिटिश एअरवेज और सिंगापुर एअरलाइंस ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। जब सरकार ने ये कहा कि बोली लगाने वाली कंपनी को किसी भारतीय कंपनी के साथ साझेदारी करनी होगी तो ये विदेशी कंपनियां पीछे हट गई थी। अभी के दौर में भारत पर लगभग 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। कर्ज को कम करने के लिए सरकार ने ऋण विशेष इकाई का गठन किया है। बोली की शर्तों के मुताबिक एअर इंडिया के खरीदार की परिसंपदा कम से कम 3,500 करोड़ होनी अनिवार्य है। बाम्बे स्टाक एक्सचेंज के अनुसार टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड की परिसंपदा 6.5 अरब रुपए है।
कैसे-कैसे पीछे हटी सरकार
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के दौर से ही कंपनी ने नए विमान खरीदने बंद कर दिए। एअर इंडिया भारत के बेहतरीन ब्रांड में से एक है, लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद इसके साथ मुश्किलें आनी शुरू हुई थीं और इसकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती गई। कंपनी में मुश्किलें तो थी हीं लेकिन इसके साथ सरकार ने इसे जिस तरह संभाला उसमें काफी दिक्कतें थीं। 80 के दशक के बाद के दौर में संगठन में लालफीताशाही बढ़ी और काम करने के पेशेवर तौर-तरीके खत्म होते गए। जानकारों की राय में सरकार को हर हाल में इसे बेचना ही था और खरीदार ने जो मांग रखी गई उसे सरकार को मानना पड़ा। अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ रही है और सरकार को अब ये पता है कि वो इसे चला नहीं पाएगी, उसे इसको बेचना ही होगा। कंपनी की हालत पहले से बिगड़ी थी लेकिन बाद में और बिगड़ गई, सरकार उसे मजबूरी में चला रही थी।

ं तो 72 संयंत्र बंद होने पर कुल खपत में 33 फीसद बिजली की कमी हो सकती है। सरकार के अनुसार, कोरोना से पहले अगस्त-सितंबर 2019 में देश में रोजाना 10,660 करोड़ यूनिट बिजली की खपत थी, जो अगस्त-सितंबर 2021 में बढ़कर 12,420 करोड़ यूनिट हो चुकी है।
उस दौरान ताप बिजलीघरों में कुल खपत का 61.91 फीसद बिजली उत्पादन हो रहा था। इसके चलते दो साल में इन संयत्रों में कोयले की खपत भी 18 फीसद बढ़ चुकी है।

प्रबंधन और जिम्मेदारी

टाटा के हाथ एअर इंडिया और एअर इंडिया एक्सप्रेस की कमान आएगी। कंपनी की बैलेंसशीट पर मौजूद 46,262 करोड़ रुपए का कर्ज सरकारी कंपनी एआइएएचएल के पास जाएगा। सौदे के तहत नई कंपनी को एक साल तक के लिए एअर इंडिया के कर्मचारियों को भी रखना होगा। उसके बाद कंपनी चाहे तो दूसरे साल से उन्हें वीआरएस दे सकती है। एअर इंडिया की बोली का आधारभूत मूल्य 12,906 करोड़ रुपए था। एअर इंडिया शेयर बाजार में लिस्ट नहीं हैं। हो सकता है कि टाटा आगे चलकर इसे शेयर बाजार में लिस्ट करा दें। वर्ष 2018 में 76 फीसद हिस्सेदारी बेचने के लिए सरकार ने बोली मंगाई थी और प्रबंधन अपने पास रखने की बात कही थी। जब इसमें किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सरकार ने प्रबंधकीय नियंत्रण के साथ बेचने का फैसला किया।

  • कोयला महंगा होने से खरीद सीमित हो रही है, उत्पादन भी कम हुआ है। मानसून से पहले स्टॉक नहीं हुआ। सरकार के अनुसार कंपनियों को यह कदम पहले से उठाना चाहिए था।
  • राज्यों पर भारी देनदारी : यूपी, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश पर कंपनियों का भारी बकाया।

क्या कहते
हैं जानकार

एअर इंडिया पर कुल 43 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। इसमें से 20 हजार करोड़ रुपए का कर्ज पिछले दो सालों में बढ़ा है। हालांकि, यह कर्ज सरकार खुद अपने ऊपर लेगी और बोली जीतने वाले टाटा के ऊपर 23 हजार करोड़ रुपए का ही कर्ज जाएगा।

  • तुहीन कांत पांडेय, सचिव,निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम)

कंपनी की हालत पहले से बिगड़ी थी लेकिन बाद में और बिगड़ गई। सरकार के हाथों में रहने से समस्या यह हुई कि जब इसे फंड करने की जरूरत पड़ती तो सरकार कहती, यह वाणिज्यिक संगठन है, इसके प्रबंधन में अस्थिरता स्वाभाविक है।

  • हर्षवर्धन,उड्डयन विशेषज्ञ