India’s unique jobs crisis: भारत में बड़ी संख्या में लोग कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं। सरकारों की खराब नीतियों के कारण कृषि क्षेत्र में काम कर रहे अतिरिक्त लोगों को दूसरे क्षेत्रों में काम नहीं दे पाए हैं। क्या ये सही है?

पूरी तरह से नहीं, अमित बसोले जो कि अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के हेड हैं। उनका कहना है कि पिछले तीन दशकों में भारत में कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। 

1993-94 से लेकर कृषि क्षेत्र में कुल 62 फीसदी लोग कार्य करते थे और 2018-19 में यह घटकर 41.4 फीसदी पर आ गई। वहीं, दूसरे शब्दों कहा जाए तो पिछले 25 सालों में कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाली एक तिहाई की कमी आई है। बसोले ने बताया 2018 की जीडीपी के मुताबिक भारत में 33 से 34 फीसदी से अधिक लोग कृषि क्षेत्र में नहीं कार्यरत होने चाहिए।  

कमजोर संरचनात्मक परिवर्तन

पिछले दो सालों में कृषि क्षेत्र में कार्यरत करने वाले लोगों में संख्या में बढ़ोतरी हुई है। 2020-21 में कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों की हिस्सेदारी बढ़कर 44-45 फीसदी हो गई है। कोरोना में लॉकडाउन के बाद कृषि क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है। दूसरा यह है कि पिछले तीन दशकों में लोगों का कृषि क्षेत्र से दूसरे सेक्टर में जाने को अर्थशास्त्री एक संरचनात्मक परिवर्तन नहीं मानते हैं। क्योंकि इस दौरान कृषि क्षेत्र के साथ मैन्युफैक्चरिंग में भी गिरावट आई है।

मैन्युफैक्चरिंग में जहां 2011-12 में 12.5 फीसदी लोग कार्य करते थे । 2020-21 में उनकी संख्या घटकर 11 फीसदी रह गई है। वहीं, दूसरी तरफ इस दौरान कंस्ट्रक्शन और सर्विस सेक्टर में करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। 2011-12 में कंस्ट्रक्शन काम करने वाले लोगों की संख्या 10.7 फीसदी थी, जो 2020-21 में बढ़कर 12.4 फीसदी हो गई है।

सर्विस सेक्टर में काम करने वाले लोगों की संख्या में 2011-12 में देश की कुल वर्कफोर्स का 28.6 फीसदी थी, जो 2020-21 बढ़कर 30.9 हो गई है। हालांकि 2018-19 में यह अपने सबसे उच्चतम स्तर 33.2 फीसदी पर थी, जिसके बाद इसमें भी गिरावट आ रही है।